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कारक : परिभाषा, भेद और उदाहरण (पूरी जानकारी)Download this PDF note || Click Here ||
कारक – Karak in Hindi Grammarपरिभाषा – क्रिया के कर्त्ता को कारक कहते हैं। जिन शब्दों का क्रिया के साथ प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंध होता है उन्हें कारक कहा जाता है अर्थात क्रिया को करने वाला कारक कहलाता है।
ये शब्द संज्ञा एवं सर्वनाम शब्दों का वाक्य की क्रिया के साथ संबंध प्रकट करते हैं। हिंदी व्याकरण में आठ (8) कारक होते हैं — कर्त्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, संबंध, अधिकरण, संबोधन कारक।
नोट – संस्कृत में कारकों की संख्या 6 मानी जाती है।
— क्रिया की सिद्धि में सहायक को कारक कहा जाता है। इस परिभाषा के अनुसार संबंध व संबोधन का क्रिया के साथ प्रत्यक्षतः कोई संबंध नहीं होता है, अतः ये कारक के अंतर्गत नहीं आते हैं किंतु इनका व्यवहार कारकों के समान ही होता है, इसीलिए इनकी गणना कारकों में की जाती है।
— सर्वनाम शब्दों में 7 कारक होते हैं क्योंकि वहाँ संबोधन कारक नहीं होता है।
— कारक को प्रकट करने के लिए संज्ञा या सर्वनाम के साथ, जो चिन्ह लगाया जाता है, उसे विभक्ति चिन्ह कहते हैं। प्रत्येक कारक का विभक्ति चिन्ह होता है, किंतु हर कारक के साथ विभक्ति चिन्ह का प्रयोग हो, यह आवश्यक नहीं है।
— कारक चिन्ह को संस्कृत में परसर्ग भी कहते हैं।
कारक के आठ (8) चिन्ह
कारक के भेद – Karak Ke Bhed in Hindi
हिन्दी व्याकरण में कारक के 8 प्रकार होते हैं जो की नीचे दिया गया हैं –1 . कर्त्ता
2 . कर्म
3 . करण
4 . सम्प्रदान
5 . अपादान
6 . संबंध
7 . अधिकरण
8 . सम्बोधन
1 . कर्त्ता कारक – (ने)
परिभाषा – संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध कराता है, अर्थात क्रिया के करने वाले को कर्ता कारक कहते हैं।— कर्ता कारक का विभक्ति चिन्ह ‘ने’ है।
— सर्वनाम शब्दों के बाद ‘ने’ का प्रयोग होता है। जैसे मैंने, तूने, उसने, हमने।
— ‘ने‘ विभक्ति चिन्ह का प्रयोग कर्त्ता कारक के साथ केवल भूतकालिक क्रिया होने पर होता है।
जैसे –
सामान्य भूत – मैंने खाना खाया।
आसन्न भूत – मैंने खाना खाया है।
पूर्ण भूत – मैंने खाना खाया था।
संदिग्ध भूत – मैंने खाना खाया होगा।
— अकर्मक क्रिया के साथ ‘ने’ कारक चिन्ह का प्रयोग नहीं होता है।
जैसे –
रोशन सोहन के पास गया।
देवेंद्र गा रहा है।
मोर नाच रहा है।
अपवाद – नहाना, छींकना, खाँसना, थूकना जैसी अकर्मक क्रियाओं के साथ ‘ने’ कारक चिन्ह का प्रयोग होता है।
जैसे – 1 . तुमने छींका। 2 . राम ने थूका।
— अकर्मक क्रियाएँ जब सकर्मक हो जाती हैं, तब ‘ने’ का प्रयोग होता है।
जैसे – उसने टेढ़ी चाल चली।
— वर्तमान काल, भविष्यत काल तथा क्रिया के अकर्मक होने पर ‘ने‘ व्यक्ति जिनका प्रयोग नहीं होगा।
— अपूर्ण तथा हेतुहेतुमद भूत में भी ने का प्रयोग नहीं होता है।
उदाहरण –
(क.) राम पढ़ता है। (वर्तमान)
(ख.) महेश लिख रहा है। (वर्तमान)
(ग.) सूर्य चमकता है। (वर्तमान)
(घ.) वह खा रहा था। (अपूर्ण भूत)
(च.) वह पढ़ता तो विद्वान होता। (हेतुहेतुमद भूत)
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद कर्त्ता कारक है क्योंकि ये कार्य का संपादन कर रहे हैं।
— यदि संयुक्त क्रिया के साथ अकर्मक क्रिया हो तो उसके साथ ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं किया जाता है।
जैसे – राम आईपीएस की परीक्षा दे चुका होगा।
— कर्मवाच्य और भाववाच्य में कर्त्ता के साथ ‘से’ विभक्ति चिन्ह लगता है।
जैसे –
श्याम से खेला जाता है।
रोहन से गृहकार्य नहीं किया गया।
गीता से गाया नहीं जाता आदि।
जैसे – श्याम ने सोनू को पीटा। इस वाक्य में कर्त्ता श्याम की क्रिया पीटने का फल सोनू पर पड़ता है। अतः उसे कर्म कारक कहेंगे।
उदाहरण –
गायत्री पत्र पढ़ रही है।
सोनू पटना जा रहा है।
छात्र विद्यालय जा रहे हैं।
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद कर्म कारक हैं।
— कर्म कारक की पहचान – क्रिया के साथ ‘क्या’ व ‘किसे’ लगाने पर जो उत्तर मिलेगा, वह कर्म होगा।
नोट – कभी भी एक ही वक्त में एक साथ दो कर्मों (गौण व मुख्य कर्म) का अस्तित्व पाया जाता है।
गौण कर्म – यह क्रिया से दूर रहता है वह इसमें कारक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
मुख्य कर्म – यह क्रिया के समीप रहता है व इसमें कारक चिन्ह का प्रयोग नहीं किया जाता।
जैसे – पिता बच्चों को खाना खिला रहे हैं।
इस वाक्य में –
बच्चों को – गौण कर्म है।
खाना – मुख्य कर्म है।
— चाहिए, छलना, पचना, रुकना, शोभना, सूझना, पढ़ना, होना, मिलना आदि क्रियाओं के साथ ‘को’ कारक चिन्ह का प्रयोग होता है।
जैसे – हमको यहाँ नहीं रुकना चाहिए।
— समय, दिन और तिथियों को प्रदर्शित करने के लिए “को” कारक चिन्ह का प्रयोग होता है।
जैसे – राम मंगलवार को गाँव जाएगा।
— जब कोई विशेषण संज्ञा के रूप में कर्म बनकर प्रयुक्त होता है, वहाँ “को” कारक चिन्ह का प्रयोग होता है।
— निर्जीव कर्म के साथ ‘को’ कारक चिन्ह का प्रयोग नहीं होता है।
अपवाद – करना, बजाना, देखना, बनाना आदि क्रियाओं के कर्म के साथ “को” कारक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
— अकर्मक क्रियाओं से बनने वाली प्रेरणार्थक क्रियाओं के कर्म के साथ “को” कारक चिन्ह लगता है।
जैसे – सोहन कील को ठोकता है। सुनील पहिए को घुमाता है।
जैसे –
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद करण कारक है।
— मुख्य चिन्ह – से, के द्वारा। से का प्रयोग प्रायः कर्तृवाच्य में होता है। के द्वारा का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है।
जैसे – मैं हाथ से खाता हूँ।
— अपूर्ण तथा हेतुहेतुमद भूत में भी ने का प्रयोग नहीं होता है।
उदाहरण –
(क.) राम पढ़ता है। (वर्तमान)
(ख.) महेश लिख रहा है। (वर्तमान)
(ग.) सूर्य चमकता है। (वर्तमान)
(घ.) वह खा रहा था। (अपूर्ण भूत)
(च.) वह पढ़ता तो विद्वान होता। (हेतुहेतुमद भूत)
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद कर्त्ता कारक है क्योंकि ये कार्य का संपादन कर रहे हैं।
— यदि संयुक्त क्रिया के साथ अकर्मक क्रिया हो तो उसके साथ ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं किया जाता है।
जैसे – राम आईपीएस की परीक्षा दे चुका होगा।
— कर्मवाच्य और भाववाच्य में कर्त्ता के साथ ‘से’ विभक्ति चिन्ह लगता है।
जैसे –
श्याम से खेला जाता है।
रोहन से गृहकार्य नहीं किया गया।
गीता से गाया नहीं जाता आदि।
2 . कर्म कारक – (को)
परिभाषा – जब क्रिया का फल कर्त्ता पर न पड़कर, अन्य किसी संज्ञा या सर्वनाम पर पड़ता है, इसे कर्म कारक कहते हैं।जैसे – श्याम ने सोनू को पीटा। इस वाक्य में कर्त्ता श्याम की क्रिया पीटने का फल सोनू पर पड़ता है। अतः उसे कर्म कारक कहेंगे।
उदाहरण –
गायत्री पत्र पढ़ रही है।
सोनू पटना जा रहा है।
छात्र विद्यालय जा रहे हैं।
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद कर्म कारक हैं।
— कर्म कारक की पहचान – क्रिया के साथ ‘क्या’ व ‘किसे’ लगाने पर जो उत्तर मिलेगा, वह कर्म होगा।
नोट – कभी भी एक ही वक्त में एक साथ दो कर्मों (गौण व मुख्य कर्म) का अस्तित्व पाया जाता है।
गौण कर्म – यह क्रिया से दूर रहता है वह इसमें कारक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
मुख्य कर्म – यह क्रिया के समीप रहता है व इसमें कारक चिन्ह का प्रयोग नहीं किया जाता।
जैसे – पिता बच्चों को खाना खिला रहे हैं।
इस वाक्य में –
बच्चों को – गौण कर्म है।
खाना – मुख्य कर्म है।
— चाहिए, छलना, पचना, रुकना, शोभना, सूझना, पढ़ना, होना, मिलना आदि क्रियाओं के साथ ‘को’ कारक चिन्ह का प्रयोग होता है।
जैसे – हमको यहाँ नहीं रुकना चाहिए।
— समय, दिन और तिथियों को प्रदर्शित करने के लिए “को” कारक चिन्ह का प्रयोग होता है।
जैसे – राम मंगलवार को गाँव जाएगा।
— जब कोई विशेषण संज्ञा के रूप में कर्म बनकर प्रयुक्त होता है, वहाँ “को” कारक चिन्ह का प्रयोग होता है।
— निर्जीव कर्म के साथ ‘को’ कारक चिन्ह का प्रयोग नहीं होता है।
अपवाद – करना, बजाना, देखना, बनाना आदि क्रियाओं के कर्म के साथ “को” कारक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
— अकर्मक क्रियाओं से बनने वाली प्रेरणार्थक क्रियाओं के कर्म के साथ “को” कारक चिन्ह लगता है।
जैसे – सोहन कील को ठोकता है। सुनील पहिए को घुमाता है।
3 . करण कारक – (से, के द्वारा)
परिभाषा – क्रिया की सिद्धि (सफलता) में कर्त्ता कि जो सबसे अधिक सहायता करता है, उसे करण कारक कहते हैं। दूसरे शब्दों में जो क्रिया का साधन होता है, उसे करण कारक कहते हैं।जैसे –
- हम बस से पूर्णिया गए।
- तुम कलम से पत्र लिखोगे।
- अनमोल साइकिल से बाजार जाता है।
- मेढ़क को पत्थर से मत मारो।
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद करण कारक है।
— मुख्य चिन्ह – से, के द्वारा। से का प्रयोग प्रायः कर्तृवाच्य में होता है। के द्वारा का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है।
जैसे – मैं हाथ से खाता हूँ।
— जब क्रिया के साधन का बोध होता है, तभी “से” का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – मैं कान से सुनता हूँ।
— विवशता, चारित्रिक कमजोरी, बाध्यता प्रकट करने के लिए “से” कारक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – मैं प्यास से बेचैन हूँ।
उदाहरण –
(क.) उसने पेंसिल से चित्र बनाया।
(ख.) वह जुकाम से परेशान है।
(ग.) मैं पूरब से आया हूँ।
(घ.) सूत से कपड़ा बनता है।
(च.) आज से दस दिन पहले की घटना है।
(छ.) भिखारी भूख से व्याकुल हैं।
ऊपर दिए गए वाक्यों में लाल रंग का पद करण कारक के उदाहरण हैं।
4 . सम्प्रदान कारक – (को, के लिए, के निमित्त के हेतु, के वास्ते)
परिभाषा – सम्प्रदान का अर्थ है – देना। कर्त्ता जिसके लिए काम करता है या जिसे कुछ देता है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं।जैसे –
गरीबों के निमित्त धन इकट्ठा करो।
बालक दूध के लिए रोता है।
— ‘चाहना’ क्रिया के साथ ‘के लिए’ कारक का प्रयोग होता है।
जैसे – गरीब विद्यार्थियों के लिए खाना चाहिए।
जैसे – गरीब विद्यार्थियों के लिए खाना चाहिए।
— अवधि या समय का निर्देश करने पर ‘के लिए’ तथा ‘को’ कारक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – मैं दीपावली पर तीन दिन के लिए गाँव जा रहा हूँ।
अन्य उदाहरण –
(क.) मोहन ने छात्रों के लिए ढोल बजाई।
(ख.) पेट के लिए मनुष्य क्या नहीं करता?
(ग.) छात्रों के लिए पुस्तकें चाहिए।
(घ.) राम ने भरत को गाय दी।
(च.) राम मंदिर निर्माण के निमित्त दान दिया गया।
— अपादान कारक के प्रमुख चिन्ह – 'से', 'अलग होना' इत्यादि है।
— अपादान कारक का प्रयोग गति सूचक क्रियाओं के साथ होता है।
जैसे – गिरना, भागना, टूटना, खाना आदि।
1 . पेड़ से फल गिरता है।
2 . लोटा छत से गिरा।
3 . झरना पर्वत से गिरा।
— भय या घृणा का भाव प्रकट करने के लिए “से“कारक चिन्ह का प्रयोग होता है।
जैसे – सज्जन व्यक्ति कलंक से डरता है।
— भाव या निषेध को प्रकट करने के लिए।
जैसे – गाय को खेत से बाहर मत जाने दो।
— तुलना, संयोग, उद्भव, निरंतरता को प्रकट करने के लिए “से” कारक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
जैसे –
सोहन मोहन से छोटा है।
गंगा, यमुना नदियाँ प्रयाग में सरस्वती से मिलती है।
— जब किसी वाक्य में स्थिर वस्तु से गतिशील वस्तु के पृथक होने का भाव प्रकट होता है, तब स्थिर वस्तु अपने स्थान पर कायम रहती है। इस स्थिति में स्थिर वस्तु में ही अपादान कारक का निवास रहता है।
जैसे – विधान्याचल पर्वत से नर्मदा नदी निकलती है। इस वाक्य में ‘विधान्याचल पर्वत‘ स्थित है और ‘नर्मदा’ गतिशील है।अतः ‘विधान्याचल पर्वत’ अपादान कारक है।
नोट – अपादान कारक और करण कारक दोनों का चिन्ह ‘से’ है परंतु दोनों में अर्थ की दृष्टि से बहुत अंतर है। करण कारक के द्वारा कर्त्ता कार्य करता है, अपादान कारक में नहीं।
जैसे –
1 . रेशमा दूध से पनीर बनाती है। (करण कारक)
2 . दूध से मलाई अलग कर दो। (अपादान कारक)
करण कारक का “से” – साधन (Medium) का भाव प्रकट होता है। अपादान कारक का “से” – अलग (Separation) होने का भाव प्रकट करता है।
जैसे –
(क.) यह मोहन का घर है।
(ख.) हम भारत के नागरिक हैं।
(ग.) यह सरकार की संस्था है।
(घ.) ये मेरे चाचा जी हैं।
(च.) यह राम का घोड़ा है।
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद संबंध कारक है।
नोट – अन्य कारकों का संबंध मुख्य रूप से क्रिया के साथ होता है और साधारण रूप से अन्य संज्ञाओं के साथ।
संबंध कारक का संबंध मुख्य रूप से संज्ञाओं के साथ ही होता है। इस कारण संबंध कारक का चिन्ह लिंग–वचन के अनुसार बदल जाता है, जबकि अन्य कारकों के साथ ऐसा नहीं होता है।
— संबंध कारक विशेषण का कार्य भी करता है। जैसे – सीता की बहन बुद्धिमती है।
जैसे – मैं दीपावली पर तीन दिन के लिए गाँव जा रहा हूँ।
अन्य उदाहरण –
(क.) मोहन ने छात्रों के लिए ढोल बजाई।
(ख.) पेट के लिए मनुष्य क्या नहीं करता?
(ग.) छात्रों के लिए पुस्तकें चाहिए।
(घ.) राम ने भरत को गाय दी।
(च.) राम मंदिर निर्माण के निमित्त दान दिया गया।
5 . अपादान कारक – (से, अलग होना)
परिभाषा – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से अलग होने, तुलना करने, अतिरिक्त निकलने, डरने, लज्जित होने, दूरी होने आदि के भाव प्रकट हो, उसे अपादान कारक कहते हैं।— अपादान कारक के प्रमुख चिन्ह – 'से', 'अलग होना' इत्यादि है।
— अपादान कारक का प्रयोग गति सूचक क्रियाओं के साथ होता है।
जैसे – गिरना, भागना, टूटना, खाना आदि।
1 . पेड़ से फल गिरता है।
2 . लोटा छत से गिरा।
3 . झरना पर्वत से गिरा।
— भय या घृणा का भाव प्रकट करने के लिए “से“कारक चिन्ह का प्रयोग होता है।
जैसे – सज्जन व्यक्ति कलंक से डरता है।
— भाव या निषेध को प्रकट करने के लिए।
जैसे – गाय को खेत से बाहर मत जाने दो।
— तुलना, संयोग, उद्भव, निरंतरता को प्रकट करने के लिए “से” कारक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
जैसे –
सोहन मोहन से छोटा है।
गंगा, यमुना नदियाँ प्रयाग में सरस्वती से मिलती है।
— जब किसी वाक्य में स्थिर वस्तु से गतिशील वस्तु के पृथक होने का भाव प्रकट होता है, तब स्थिर वस्तु अपने स्थान पर कायम रहती है। इस स्थिति में स्थिर वस्तु में ही अपादान कारक का निवास रहता है।
जैसे – विधान्याचल पर्वत से नर्मदा नदी निकलती है। इस वाक्य में ‘विधान्याचल पर्वत‘ स्थित है और ‘नर्मदा’ गतिशील है।अतः ‘विधान्याचल पर्वत’ अपादान कारक है।
नोट – अपादान कारक और करण कारक दोनों का चिन्ह ‘से’ है परंतु दोनों में अर्थ की दृष्टि से बहुत अंतर है। करण कारक के द्वारा कर्त्ता कार्य करता है, अपादान कारक में नहीं।
जैसे –
1 . रेशमा दूध से पनीर बनाती है। (करण कारक)
2 . दूध से मलाई अलग कर दो। (अपादान कारक)
करण कारक का “से” – साधन (Medium) का भाव प्रकट होता है। अपादान कारक का “से” – अलग (Separation) होने का भाव प्रकट करता है।
6 . संबंध कारक – (का, के, की, रा, रे, री)
संबंध कारक का अर्थ – एक संज्ञा या सर्वनाम का दूसरी संज्ञा या सर्वनाम से संबंध बताने वाले शब्द।जैसे –
(क.) यह मोहन का घर है।
(ख.) हम भारत के नागरिक हैं।
(ग.) यह सरकार की संस्था है।
(घ.) ये मेरे चाचा जी हैं।
(च.) यह राम का घोड़ा है।
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद संबंध कारक है।
नोट – अन्य कारकों का संबंध मुख्य रूप से क्रिया के साथ होता है और साधारण रूप से अन्य संज्ञाओं के साथ।
संबंध कारक का संबंध मुख्य रूप से संज्ञाओं के साथ ही होता है। इस कारण संबंध कारक का चिन्ह लिंग–वचन के अनुसार बदल जाता है, जबकि अन्य कारकों के साथ ऐसा नहीं होता है।
— संबंध कारक विशेषण का कार्य भी करता है। जैसे – सीता की बहन बुद्धिमती है।
7 . अधिकरण कारक – (में, पर)
किसी वस्तु के रहने बैठने या ठहरने के आधार (Base) को अधिकरण कहते हैं। जिन संज्ञा शब्दों के द्वारा क्रिया के आधार का ज्ञान होता है वे अधिकरण कारक कहे जाते हैं।
जैसे –
1 . पेड़ पर पक्षी बैठे हैं।
2 . स्कूल में छात्र बैठे हैं।
3 . हत्या करने पर सजा मिलेगी।
4 . पिता पुत्र से प्रेम करता है।
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद अधिकरण कारक है।
स्थान बोधक —
1 . मैना डाल पर बैठी है।
2 . भालू जंगल में रहता है।
3 . इस जगह पूर्ण शांति है।
4 . तुम्हारे घर सोना बरसेगा।
काल बोधक —
1 . मैं शाम को जाऊँगा।
2 . बस चार घंटे में पहुंचेगी।
3 . वार्षिक परीक्षा मार्च में होगी।
4 . वह अगले दिन जाएगा।
— ‘के अंदर', 'के भीतर' और 'के ऊपर' आदि का प्रयोग भी अधिकरण कारक में किया जाता है।
जैसे –
— प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए भी अधिकरण कारक का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – मैं परीक्षा में फेल हो गया तो लोग क्या कहेंगे।
— निवेदन के अर्थ में भी अधिकरण कारक का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – आपकी सेवा में निवेदन है।
— मूल्य, तुलना व अंतर का भाव प्रकट करने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग।
जैसे –
— संज्ञा से क्रिया विशेषण बनाने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग।
जैसे – आप अपने तथ्य समिति के समक्ष संक्षेप में रखिए।
— आश्रय या अनुसरण का भाव प्रकट करने के लिए।
जैसे –
संबोधन कारक में संज्ञा या सर्वनाम से पूर्व प्रायः हे, रे, अजी, ओ, अरे आदि का प्रयोग किया जाता है। संबोधन कारकों के पश्चात विस्मयादिबोधक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
जैसे –
1 . हे ईश्वर! मुझे कष्टों से बचाइए।
2 . हे भगवान! यह कैसी लीला है।
3 . हे मोहन! तुम गांव जाओ।
4 . ओ पथिक! तुम कहाँ जाते हो।
5 . अरे बालक! तुम क्या करते हो।
6 . अरे भाई! तुम अब तक कहाँ थे ?
7 . अरे लड़के! यहाँ आओ।
8 . बच्चों! पढ़ाई करो।
ऊपर दिए गए वाक्यों में लाल रंग का पद संबोधन कारक है
जैसे –
1 . पेड़ पर पक्षी बैठे हैं।
2 . स्कूल में छात्र बैठे हैं।
3 . हत्या करने पर सजा मिलेगी।
4 . पिता पुत्र से प्रेम करता है।
उपयुक्त वाक्यों में लाल रंग का पद अधिकरण कारक है।
स्थान बोधक —
1 . मैना डाल पर बैठी है।
2 . भालू जंगल में रहता है।
3 . इस जगह पूर्ण शांति है।
4 . तुम्हारे घर सोना बरसेगा।
काल बोधक —
1 . मैं शाम को जाऊँगा।
2 . बस चार घंटे में पहुंचेगी।
3 . वार्षिक परीक्षा मार्च में होगी।
4 . वह अगले दिन जाएगा।
— ‘के अंदर', 'के भीतर' और 'के ऊपर' आदि का प्रयोग भी अधिकरण कारक में किया जाता है।
जैसे –
- सुरंग के अंदर झांक कर देखो।
- छत के ऊपर मोर बैठा है।
— प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए भी अधिकरण कारक का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – मैं परीक्षा में फेल हो गया तो लोग क्या कहेंगे।
— निवेदन के अर्थ में भी अधिकरण कारक का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – आपकी सेवा में निवेदन है।
— मूल्य, तुलना व अंतर का भाव प्रकट करने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग।
जैसे –
- सोहन मोहन से ज्यादा होनहार है।
- भारत-पाकिस्तान से आर्थिक दृष्टि से समृद्ध है।
— संज्ञा से क्रिया विशेषण बनाने के लिए अधिकरण कारक का प्रयोग।
जैसे – आप अपने तथ्य समिति के समक्ष संक्षेप में रखिए।
— आश्रय या अनुसरण का भाव प्रकट करने के लिए।
जैसे –
- ऐश्वर्या राय की बेटी अपनी माँ पर गई है।
- भगवान पर विश्वास रखो।
8 . संबोधन कारक – (हे, ओ, अरे, अजी)
परिभाषा – किसी को संबोधित करने के लिए संबोधन कारक का प्रयोग किया जाता है। संज्ञा के जिस रुप से किसी को पुकारना या सचेत करने का भाव प्रतीत हो, उसे संबोधन कारक कहते हैं।संबोधन कारक में संज्ञा या सर्वनाम से पूर्व प्रायः हे, रे, अजी, ओ, अरे आदि का प्रयोग किया जाता है। संबोधन कारकों के पश्चात विस्मयादिबोधक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
जैसे –
1 . हे ईश्वर! मुझे कष्टों से बचाइए।
2 . हे भगवान! यह कैसी लीला है।
3 . हे मोहन! तुम गांव जाओ।
4 . ओ पथिक! तुम कहाँ जाते हो।
5 . अरे बालक! तुम क्या करते हो।
6 . अरे भाई! तुम अब तक कहाँ थे ?
7 . अरे लड़के! यहाँ आओ।
8 . बच्चों! पढ़ाई करो।
ऊपर दिए गए वाक्यों में लाल रंग का पद संबोधन कारक है