मध्यप्रदेश के राष्ट्रिय उद्यान (MP National Park)

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भारत के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान 

मध्यप्रदेश के राष्ट्रिय उद्यान 

कान्हा टाईगर रिजर्व - मंडला / बालाघाट 

यह भारत का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान हैं। मध्य प्रदेश अपने राष्ट्रीय पार्को और जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। कान्हा शब्द कनहार से बना है जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ चिकनी मिट्टी है। यहां पाई जाने वाली मिट्टी के नाम से ही इस स्थान का नाम कान्हा पड़ा। इसके अलावा एक स्थानीय मान्यता यह रही है कि जंगल के समीप गांव में एक सिद्ध पुरुष रहते थे। जिनका नाम कान्वा था। कहा जाता है कि उन्‍हीं के नाम पर कान्हा नाम पड़ा। 



जीव जन्तुओं का यह पार्क 940 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब और धारावाहिक जंगल बुक की भी प्रेरणा इसी स्‍थान से ली गई थी। 

सन् 1968 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत इस उद्यान का 917.43 वर्ग कि.मी. का क्षेत्र कान्हा व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। 

यह राष्ट्रीय पार्क 940 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह क्षेत्र घोड़े के पैरों के आकार का है और यह हरित क्षेत्र सतपुड़ा की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इन पहाड़ियों की ऊंचाई 450 से 900 मीटर तक है। इसके अन्तर्गत बंजर और हेलन की घाटियां आती हैं जिन्हें पहले मध्य भारत का प्रिन्सेस क्षेत्र कहा जाता था। 

1879-1910 ईसवी तक यह क्षेत्र अंग्रजों के शिकार का स्थल था। कान्हा को 1933 में अभयारण्य के तौर पर स्थापित कर दिया गया और इसे 1955 में राष्ट्रीय उद्यान् घोषित कर दिया गया। यहां अनेक पशु पक्षियों को संरक्षित किया गया है। लगभग विलुप्‍त हो चुकी बारहसिंहा की प्रजातियां यहां के वातावरण में देखने को मिल जाती है।

बांधवगढ टाईगर रिजर्व - उमरिया 

बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है। यह वर्ष 1968 में राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था। इसका क्षेत्रफल 437 वर्ग किमी है। यहां बाघ आसानी से देखा जा सकता है। यह मध्यप्रदेश का एक ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है जो 32 पहाड़ियों से घिरा है।

यह भारत का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान हैं। बांधवगढ़ 448 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। इस उद्यान में एक मुख्य पहाड़ है जो 'बांधवगढ़' कहलाता है। 
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में टाइगर



811 मीटर ऊँचे इस पहाड़ के पास छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं। पार्क में साल और बंबू के वृक्ष प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाते हैं। बांधवगढ़ से सबसे नजदीक विमानतल जबलपुर में है जो 164 किलोमीटर की दूरी पर है। रेल मार्ग से भी बांधवगढ़ जबलपुर, कटनी, सागर और सतना से जुड़ा है। 

खजुराहो से बांधवगढ़ के बीच 237 किलोमीटर की दूरी है। दोनों स्थानों के बीच केन नदी के कुछ हिस्सों को क्रोकोडाइल रिजर्व घोषित किया गया है।

पन्ना टाईगर रिजर्व - पन्ना 

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान (Panna National Park) भारत में मध्य प्रदेश के पन्ना और छतरपुर जिलों में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है। 1981 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया इस उद्यान का क्षेत्रफल 542.67 वर्ग किलोमीटर है। इसे 25 अगस्त 2011 को बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में नामित किया गया था। पन्ना को 2007 में भारत के पर्यटन मंत्रालय द्वारा भारत के सर्वश्रेष्ठ रखरखाव वाले राष्ट्रीय उद्यान के रूप में उत्कृष्टता का पुरस्कार दिया गया था। केन नदी इस राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य आकर्षण है। ऐसा माना जाता है कि पाण्डवों ने अपना अधिकांश समय पन्ना में बिताया था। इसका उल्लेख महाभारत में भी है।


उद्यान को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जैसे कि ताडोबा उत्तर क्षेत्र, मोरहुली क्षेत्र और कोलसा दक्षिण रेंज। उद्यान में तीन जल स्रोत भी हैं, जैसे ताडोबा नदी, ताडोबा झील और कोलासा झील। तीनों क्षेत्रों में सफारी की अनुमति है।

पन्ना अभ्यारण्य भारत के मध्य राज्य में केन नदी के क्षेत्रों के अलावा, खजुराहो से 57 किलोमीटर की दूरी पर मध्य प्रदेश में स्थित है, जो विश्व धरोहर केंद्र है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को 1994/95 में भारत के टाइगर रिजर्व में से एक घोषित किया गया और प्रोजेक्ट टाइगर के संरक्षण में रखा गया। पन्ना में बाघों की आबादी में कई बार गिरावट दर्ज की गई है।

पेंच टाईगर रिजर्व - सिवनी -

पेंच राष्ट्रीय उद्यान को मोगली लैण्ड कहा जाता है। रुडयार्ड किपलिंग की भारत के जंगलों पर आधारित कथाएँ यहीं से प्रेरित मानी जाती हैं और विशेषकर "द जंगल बुक" (जिसके प्रमुख पात्र का नाम मोगली है) का इस क्षेत्र से सम्बन्ध है।
सिवनी और छिन्दवाड़ा जिले की सीमाओं पर 292.83 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान का नामकरण इसे दो भागों में बांटने वाली पेंच नदी के नाम पर हुआ है। यह नदी उद्यान के उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर बहती है। देश का सर्वश्रेष्ठ टाइगर रिजर्व होने का गौरव प्रात करने वाले पेंच राष्ट्रीय उद्यान को 1993 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। 

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित इस नेशनल पार्क में हिमालयी प्रदेशों के लगभग 210 प्रजातियों के पक्षी आते हैं। अनेक दुर्लभ जीवों और सुविधाओं वाला पेंच नेशनल पार्क तेजी से पर्यटकों को अपनी ओर खींच रहा है। 
पेंच नेशनल पार्क में जिन पक्षी प्रजातियों का मुख्य रूप से आना-जाना है, उनमें पीफोल, रेड जंगल फोल, कोपीजेन्ट, क्रीमसन, बेस्ट डबारबेट, रेड वेन्टेड बुलबुल, रॉकेट टेल डोगों, मेंगपाई राबिन, लेसर, व्हिस्टल टील, विनेटल सोवेला, ब्राह्मनी हक प्रमुख हैं। देशभर में तेजी से विलुप्त होते जा रहे गिद्ध भी यहां बहुतायत में पाये जाते है। इनमें दो प्रकार के गिद्ध प्रमुख हैं। पहला 'किंग वल्चर' जिसके गले में लाल घेरा होता है और दूसरा है- 'व्हाइट ब्रेंद वल्चर' जिसके पीछे सफेद धारियां होती हैं। यहां राज तोता (करन मिट्ठू) और बाज सहित प्रदेश का सरकारी पक्षी 'दूधराज' भी मस्ती करते दिखाई देते हैं।

अंतरराष्ट्रीय जल विद्युत परियोजना के तहत तोतलाडोह बांध बनने से मध्य प्रदेश का कुल 5,451 वर्ग किलोमीटर डूब क्षेत्र में आता है। इस बांध के बन जाने से राष्ट्रीय उद्यान के मध्य भाग में विशाल झील बन गई है, जो वन्यप्राणियों की पानी की आवश्यकता की दृष्टि से बहुत उपयुक्त है। डूब क्षेत्र में छिंदवाड़ा का 31.271 वर्ग किमी तथा सिवनी का 17.246 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आता है। कान्हा और बांधवगढ़ जैसे विख्यात राष्ट्रीय उद्यान के विशेषज्ञों का मानना है कि प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से पेंच टाइगर उद्यान बेहतर स्थिति में है।

सतपुडा टाईगर रिजर्व - होशंगाबाद 

सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अंतर्गत होशंगाबाद ज़िले में स्थित है। यह 524  वर्ग कि॰मी॰ के क्षेत्र में फैला हुआ है। अपने आसपास बोरी और पचमढ़ी अभयारण्य के साथ, यह 1427  वर्ग कि॰मी॰ का अद्वितीय मध्य भारतीय पार्वत्य देश (highland) पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करता है। यह 1981 में स्थापित किया गया था।

सतपुड़ा पर्वतमाला का दृश्य


राष्ट्रीय पार्क का इलाका अत्यंत दुर्गम है। और इसके अंतर्गत बलुआ पत्थर चोटियों, संकीर्ण घाटियों, नालों और घने जंगलों के इलाके हैं। इस इलाके की औसतन ऊँचाई 300  से 1352  मीटर है। इस उद्यान में 1350 मीटर ऊँची धूपगढ़ शिखर भी है, और सपाट मैदान भी हैं। राष्ट्रीय पार्क से निकटतम शहर पचमढ़ी है, और निकटतम रेलवे स्टेशन पिपरिया है, जो 55  किलोमीटर दूर है। इसकी राज्य की राजधानी भोपाल से दूरी 210  किलोमीटर है।

संजय - दुबरी टाईगर रिजर्व - सीधी

संजय राष्ट्रीय उद्यान भारत के मध्य प्रदेश राज्य में सीधी जिले में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है। इस उद्यान का विस्तार 466.657 वर्ग कि॰मी॰ का है और यह संजय-डुबरी टाइगर रिज़र्व के अंतर्गत पड़ता है। जिसे 2008 में बाघ आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।संजय टाइगर रिज़र्व से ही सोन घड़ियाल अभयारण्य एवं बगदरा अभयारण्य संबद्ध हैं।जो कि खासे आकर्षण का केंद्र हैं।

नोट: 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ की स्थापना के बाद इनका नाम संजय राष्ट्रीय उद्यान से गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान व गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व रखा गया। इनका नाम 2001 में बदला गया था। अब यह छत्तीसगढ़ के अधीन में हैं।

माधव राष्ट्रीय उद्यान - शिवपुरी

माधव राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश के सबसे पुराने राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। यह शिवपुरी के उत्तर में स्थित है। उद्यान पर्यटकों के लिए वर्ष भर खुला रहता है। यहाँ कई प्रकार की पहाडियाँ, सूखे, मिश्रित और पतझड़ी वन और घास के बड़े मैदान झील के आस-पास हैं, जो अनेक प्रकार के वन्‍य जीवों का दृश्‍य उपलब्‍ध कराते हैं। 

अधिकांश जानवरों को बड़े आराम से इस उद्यान में घूमते हुए देखा जा सकता है, जैसे- छोटे चिंकारा, भारतीय गेजल और चीतल आदि। 

'माधव राष्ट्रीय उद्यान' की स्थापना वर्ष 1958 में मध्य प्रदेश के राज्य बनने के साथ ही की गई थी। यह उद्यान मूल रूप से ग्वालियर के महाराजा के लिए शाही शिकार का अभयारण्य था। 

इस उद्यान का कुल क्षेत्रफल 354.61 वर्ग कि.मी. है। ग्वालियर के माधवराव सिंधिया ने वर्ष 1918 में मनिहार नदी पर बांधों का निर्माण करते हुए सख्य सागर और माधव तालाब का निर्माण करवाया था, जो आज अन्य झरनों और नालों के साथ उद्यान के इकलौते बड़े जल निकाय हैं। 

इस राष्ट्रीय उद्यान को 1972 के 'वन्‍य जीवन संरक्षण अधिनियम' के तहत और भी अधिक सुरक्षित बनाया गया है। यहाँ की ऊंचाई 360-480 मीटर के आस-पास है।

वन - विहार राष्ट्रीय उद्यान - भोपाल

वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भारत के मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल में एक राष्ट्रीय उद्यान है। राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) का नाम सुनते ही आँखों के सामने दूर तक फैला घना जंगल और खुले घूमते जंगली जानवरों का दृश्य उभर आता है। 

लेकिन अगर आप कभी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल जाएँ तो वहाँ शहर के बीचोंबीच बना 'वन विहार' राष्ट्रीय उद्यान इन सब बातों को गलत साबित करता प्रतीत होगा। यह 'थ्री इन वन' राष्ट्रीय उद्यान है। यह अनोखा उद्यान नेशनल पार्क होने के साथ-साथ एक चिड़ियाघर (जू) तथा जंगली जानवरों का रेस्क्यू सेंटर (बचाव केन्द्र) भी है। 

445 हैक्टेयर क्षेत्र में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में मिलने वाले जानवरों को जंगल से पकड़कर नहीं लाया गया है। यहाँ ज्यादातर वो जानवर हैं जो लावारिस, कमजोर, रोगी, घायल अथवा बूढ़े थे या फिर जंगलों से भटक-कर ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में आ गए थे तथा बाद में उन्हें पकड़कर यहाँ लाया गया। 

कुछ जानवर दूसरे प्राणी संग्रहालयों से भी यहाँ लाए गए हैं जबकि कुछ सर्कसों से छुड़ाकर यहाँ रखे गए हैं। वन विहार अद्भुत है। पाँच किलोमीटर लंबे इस राष्ट्रीय उद्यान के एक तरफ पूरा पहाड़ और हराभरा मैदानी क्षेत्र है जो जंगलों तथा हरियाली से आच्छादित है। 

दूसरी ओर भोपाल का मशहूर तथा खूबसूरत बड़ा तालाब (ताल) है। ये संगम अपने आप में बहुत सुंदर लगता है। वन विहार विस्तृत फैला हुआ चिड़ियाघर है। यह प्रदेश का एकमात्र 'लार्ज जू' यानी विशाल चिड़ियाघर है। इससे पहले यह मध्यम श्रेणी के चिड़ियाघर में आता था। 

यह प्रदेश का एकमात्र ऐसा चिड़ियाघर भी है जिसकी देखरेख वन विभाग करता है। प्रदेश में दो अन्य चिड़ियाघर भी हैं। ये इंदौर और ग्वालियर में स्थित हैं। लेकिन ये दोनों ही चिड़ियाघर 'स्मॉल जू' यानी छोटे चिड़ियाघरों की श्रेणी में आते हैं और इनकी देखरेख स्थानीय नगर-निगम करता है। ये दोनों ही चिड़ियाघर किसी भी मामले में वन विहार के आस-पास नहीं ठहरते। 

वन विहार की शानदार खासियतों की वजह से ही इसे 18 जनवरी 1983 को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया जो अपने आप में एक उपलब्धि है।

फॉसिल राष्ट्रीय उद्यान - डिंडोरी

जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान भारत के मध्य प्रदेश राज्य में डिंडोरी ज़िले में स्थित एक पौधों के जीवाश्म का राष्ट्रीय उद्यान है। इसकी स्थापना 1968 को हुई। यह म.प्र.का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान है। यह डिंंडोरी जिले में शहपुरा के पास स्थित है।

0.270 वर्ग किमी में फैले इस उद्यान में "भूतल जीवाश्म" रखे गये है, जिसमें 40 मिलियन से 150 मिलियन वर्ष पुराने पौधों के जीवाश्म रखे गये है। यह नीलगिरि जीवाश्म के लिये जाना जाता है, जोकि अभी तक का सबसे पुराना जीवाश्म माना जाता है। घुघवा नाम से प्रचलित इस उद्यान में अब तक 18 पादप कुलों के31 परिवारों के पौधों के जीवाश्म खोजे जा चुके है।

इस जीवाश्म क प्रमुख स्थान 'घुघवा' है, जो 6.84 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है, इसके अलावा तीन अन्य स्थल भी खोजे गये है जिसमें उमरिया-सिल्थेर (23.02 एकड़), देवरी खुर्द (16.53 एकड़) और बरबसपुर (16.53 एकड़) शामिल है।

डायनासोर जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान - धार

संरक्षित क्षेत्र का नाम : डायनासोर जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान बाग
जिले का नाम : धार
वनमंडल का नाम : धार
क्षेत्रफल : कुल क्षेत्रफल - 89.740 हेक्टेयर 
जैव विविधता संरक्षण का इतिहास :
क्षेत्र में लगभग 6.5 करोड वर्ष पुराने (प्राचीन)‌ दुर्लभ डायनासोर जीवाश्मों की प्राप्ति के कारण पारिस्थिकीय, प्राणी जातीय, वनस्पतीय, भू आकृति विज्ञान, प्राणी वैज्ञानिकीय और जीवाश्म की दृष्टि से पर्याप्त महत्तव का है । यह क्षेत्र वर्ष 2011 में डायनासोर जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान बाग के रूप में अधिसूचित किया गया है ।

लेंडस्केप का विवरण : पहाडी एवं समतल भूमि ।  
वन का प्रकार : मुख्यत: दक्षिणीय ऊष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वनों की श्रेणी में रखा गया है ।

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