Glacier

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 Noble Exam City Geography Notes

हिमनद (Glacier)



हिमानी या हिमनद ( Glacier) पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फ राशि को कहते है जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहमान होती है। ध्यातव्य है कि यह हिम राशि सघन होती है और इसकी उत्पत्ति ऐसे इलाकों में होती है जहाँ हिमपात की मात्रा हिम के क्षय से अधिक होती है और प्रतिवर्ष कुछ मात्रा में हिम अधिशेष के रूप में बच जाता है। वर्ष दर वर्ष हिम के एकत्रण से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है और वे सघन हिम (Ice) के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है जिसे हिमनद कहते हैं। प्रायः यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर जल देता है।




पृथ्वी पर 99% हिमानियाँ ध्रुवों पर ध्रुवीय हिम चादर के रूप में हैं। इसके अलावा गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों के हिमनदों को अल्पाइन हिमनद कहा जाता है और ये उन ऊंचे पर्वतों के सहारे पाए जाते हैं जिन पर वर्ष भर ऊपरी हिस्सा हिमाच्छादित रहता है।

ये हिमानियाँ समेकित रूप से विश्व के मीठे पानी (freshwater) का सबसे बड़ा भण्डार हैं और पृथ्वी की धरातलीय सतह पर पानी के सबसे बड़े भण्डार भी हैं।

हिमानियों द्वारा कई प्रकार के स्थलरूप भी निर्मित किये जाते हैं जिनमें प्लेस्टोसीन काल के व्यापक हिमाच्छादन के दौरान बने स्थलरूप प्रमुख हैं। इस काल में हिमानियों का विस्तार काफ़ी बड़े क्षेत्र में हुआ था और इस विस्तार के दौरान और बाद में इन हिमानियों के निवर्तन से बने स्थलरूप उन जगहों पर भी पाए जाते हैं जहाँ आज उष्ण या शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है। वर्तमान समय में भी उन्नीसवी सदी के मध्य से ही हिमानियों का निवर्तन जारी है और कुछ विद्वान इसे प्लेस्टोसीन काल के हिम युग के समापन की प्रक्रिया के तौर पर भी मानते हैं।


हिमानियों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि ये जलवायु के दीर्घकालिक परिवर्तनों जैसे वर्षण, मेघाच्छादन, तापमान इत्यादी के प्रतिरूपों, से प्रभावित होते हैं और इसीलिए इन्हें जलवायु परिवर्तन और समुद्र तल परिवर्तन का बेहतर सूचक माना जाता है।

हिमानी का निर्माण

हिमानी निर्मित स्थलरूप -

अपरदनात्मक

भूदृश्य का उद्भव :- हिमानीकृत स्थलाकृतियाँ हिमानी के कार्य अनाच्छादन करने वाली अन्य शक्तियों या कारकों की भाँति हिमानियां भी अपरदन, परिवहन तथा निक्षेपण कार्यों द्वारा धरातल के स्वरूप को परिवर्तित करती रहती हैं । किसी हिमानी द्वारा किसी क्षेत्र विशेष की जाने वाली क्रियाओं ( अपरदन , परिवहन , निक्षेपण ) को हिमनदन ( Glaciation ) कहते हैं ।

हिमानी का अपरदन कार्य :— हिमानी के अपरदन कार्यों को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। कुछ विद्वानों अनुसार हिम अधिकतर भूमि की रक्षा करता है, जबकि अन्य के अनुसार हिमानियाँ अपरदन करती हैं। वास्तव में हिमानियां दोनों ही कार्य करती हैं। जब तक हिम गति नहीं करता है भूमि की रक्षा करता है तथा जब प्रवाहित होने लगता है तो अपरदन करता है। हिमानी मुख्यतः तीन प्रकार से अपरदन करती है :

( i ) उत्पाटन ( Plucking ) :- हिमानी की तली में अपक्षय के कारण बने चट्टानों के टुकड़े गतिशील हिम साथ फँस कर आगे खिसकते रहते हैं। इसे उत्पाटन क्रिया कहते हैं ।

( ii ) अपघर्षण ( Abrasion ):- हिमानी का अधिकांश अपरदन कार्य अपघर्षण विधि से ही होता है। अकले हिम में अपरदन की अधिक क्षमता नहीं होती है। जब इसमें उत्पाटन द्वारा शिलाखण्ड व कंकड़ पत्थर जुड़ जाते हैं तो घाटी की तली व पावों को रगड़ने व खरोंचने लगते हैं । अपरदन कार्य में हिमानी से पिघला हुआ जल भी सहायता करता है ।

( iii ) सन्निघर्षण ( Attrition ):- हिमानी के साथ प्रवाहित होते हुए कंकड़ , पत्थर व शिलाखंड (शिलाखण्ड) आपस में भी रगड़ होने से खण्डित होते हैं एवं घिसते हैं। इस प्रक्रिया को सन्निघर्षण कहते हैं ।


हिमनद के प्रकार 

हिमनद के प्रकार - निर्माण प्रक्रिया, आकार, स्वरूप तथा स्थिति एवं विस्तार की दृष्टि से हिमनद विभिन्न प्रकार के होते हैं। सामान्यत: आकार एवं स्थिति के आधार पर हिमनद चार प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं -

  • हिम टोपी (Ice Cap Galciers)
  • अल्पाइन या घाटी हिमनद (Alpine or Valley Glaciers)
  • पर्वतीय हिमनद (Piedmont Glaciers)
  • महाद्वीपीय हिमनद (Ice Cap Glaciers)



  1. हिम टोपी हिमनद-

हिम टोपी हिमनद अल्पाइन एवं महाद्वीपीय हिमनद का संयोग (Combination) है, जो पर्वतों एवं उच्च पठारों से आवृत्त रहते हैं। ये अल्पाइन हिमनद तीव्र ढ़ालों पर प्रवाहित होते है। इन्हें लघु महाद्वीपीय हिमनद भी कहते हैं। 50,000 वर्ग किमी से कम विस्तार वाले हिम पिण्ड हिम टोपी कहलाते है। नार्वे का ‘स्वलबर्ड आइलैण्ड’, इसी प्रकार का हिमनद है।

2. अल्पाइन या घाटी हिमनद

 - पर्वतीय भागों से जब हिम टोपी हिमनद गुरूत्व के कारण नीचे ढालों पर खिसकते हैं तो इन्हें घाटी हिमनद कहते हैं।

सर्वप्रथम इनका अध्ययन आल्पस पर्वत पर किया गया जिसके नाम पर इसे अल्पाइन हिमनद भी कहते हैं। हिमालय (एषिया) तथा रॉकीज (उत्तरी अमेरिका) पर्वतों में ऐस हिमनद बहुतायत से मिलते हैं। ये हिमनद नीचे उतरने के साथ ही संकरे होने लगते हैं। घाटी हिमनद हिम रेखा के ऊपर ही पाये जाते हैं। घाटी हिमनद घाटी के षिखर पर सर्क में हिम के संचयन के साथ आरम्भ होता है जो क्रमिक रूप से हिमनद में संलीन होता रहता है।

3.पर्वतीय हिमनद -

ये विस्तृत हिमनदीय आवरण होते हैं, जो अनेक अल्पाइन हिमनदों के अभिसरण तथा सम्मिलन द्वारा पर्वतों के आधार पर तली पर बनते हैं। इस प्रकार के हिमनद विषेष रूप से अलास्का में मिलते हैं। मेलारचाइना अलास्का का एक प्रमुख पर्वतीय हिमनद है, जो 3900 वर्ग किमी में विस्तृत है।

4. महाद्वीपीय हिमनद -

ये सघन बर्फ के विस्तृत आवरण होते हैं, जो अपने क्षेत्र की सम्पूर्ण भूसतह को घेरे रहते हैं। इनका विकास किसी विस्तृत क्षेत्र में हिम के सतत् संचयन से विस्तृत हिम चादर बनने से होता है। इसे हिम चादर भी कहते हैं। अण्टार्कटिका में 13,000,00 वर्ग किमी क्षेत्र में महाद्वीपीय हिमनद का विस्तार है। ग्रीनलैण्ड का भी 18,00,00 वर्ग किमी क्षेत्र हिमचादर से आवृत है।

लेबे्रडोर हिमनद में जेम्स की खाड़ी के पास हिम की मोटाई 3000 मीटर है। उपर्युक्त हिमनदों में सामान्य वर्गीकरण के अन्तर्गत प्रमुख चार प्रकार के हिमनदों का विवरण दिया जा चुका है।


शेष गौण हिमनदीय रूपों का विवरण है-

बर्फ चादर - हिमचादर का विस्तार 50,000 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र में होता है। यह समतल गुम्बदाकार रूप में फैली होती है। इसका निर्माण हिम हिमचादर तथा अण्टार्कटिका हिमचादर से होता है जहाँ क्रमष: 11 तथा 85 प्रतिशत हिम स्थित है। इनके अतिरिक्त आर्कटिक कनाडा, आइसलैण्ड तथा नार्वे में भी अनेक गौण हिमचादर मिलती है।

बर्फ छत्रक - ये छोटी हिमचादर होती है, जिसका विस्तार 50,000 वर्ग किमी से कम क्षेत्र में होता है। यह एक स्थायी बर्फ संहति होती हैं जो ऊंचे पर्वतों तथा उच्च अक्षांषों में मिलती हैं। बरनेस बर्फ टोपी तथा बैफिन बर्फ टोपी प्रमुख हिम टोपियाँ हैं।

बर्फ गुम्बद - यह बर्फ चादर तथा बर्फ छत्रक का केन्द्रीय भाग होता है।

निर्गम हिमनद - निर्गम हिमनद एक धारा होती है, जो बर्फ चादर तथा टोपी के भाग से प्रवाहित होती है। आगे चलकर ये घाटी हिमनद से मिल जाते हैं।

हिमताल -
यह तटीय भागों से सम्बद्ध तैरती हुई बर्फ चादर होती है। इसका तलीय भागों से कोई घर्षण नहीं होता तथा स्वतन्त्र प्रवाह करती है।

बर्फ स्थल - यह प्लावी बर्फ पुँज अथवा समुद्री बर्फ का एक विस्तृत क्षेत्र होता है, जो विशेषत: ध्रुवीय क्षेत्रों में मिलता हैं।

सर्क हिमनद - सर्क हिमनद लघु बर्फ के भाग होते हैं।



जलवायु परिवर्तन और हिमनद - 

वैज्ञानिकों का दावा है, समुद्र में 280 फीट ऊंची दीवार बनाने से नहीं पिघलेंगे ग्लेशियर। ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने नई तरकीब निकाली है, इसके तहत समुद्र में 980 फीट ऊंची धातु की दीवार बनानी होगी। जो पहाड़ के नीचे मौजूद गरम पानी ग्लेशियरों तक नहीं पहुंचने देंगे। इससे हिमखंड टूटकर समुद्र में नहीं गिरेगें। समुद्र का जलस्तर बढ़ने की कमी आएगी साथी तटीय शहरों के डूबने का खतरा भी कम होगा। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में बताया गया कि 0.1 क्यूबिक किलोमीटर से 1.5 किलोमीटर तक धातु लगेगी। अरबों रुपए खर्च होने का अनुमान है। इससे पहले इस तकनीक से दुबई का जुमेरा पार्क और हांगकांग इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया गया था। दुबई के पास जुमेरा पार्क बनाने में 0.3 किलोमीटर धातु से दीवार बनाई गई थी जिस पर 86 करोड़ रु खर्च हुए थे। 2016 में नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी ने बताया था कि पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ काफी तेजी से पिघल रही है। पहाड़ के नीचे गर्म पानी भरना इसका कारण हो सकता है।

हिमालय की हिमानियाँ

हिमालय में हजारों छोटे-बड़े हिमनद है जो लगभग 3350 वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र में फैले है। कुछ विशेष हिमनदों का विवरण निम्नवत् है -

गंगोत्री- यह 26 कि॰मी॰ लम्बा तथा 4 कि॰मी॰ चौड़ा हिमखण्ड उत्तरकाशी के उत्तर में स्थित है।

पिण्डारी- यह गढ़वाल-कुमाऊँ सीमा के उत्तरी भाग पर स्थित है।

सियाचिन - यह काराकोरम श्रेणी में है और 72 किलोमीटर लम्बा है

सासाइनी - काराकोरम श्रेणी

बियाफो - काराकोरम श्रेणी

हिस्पर - काराकोरम श्रेणी

बातुरा - काराकोरम श्रेणी

खुर्दोपिन - काराकोरम श्रेणी

रूपल - काश्मीर

रिमो - काश्मीर, 40 किलोमीटर लम्बा

सोनापानी - काश्मीर

केदारनाथ - उत्तराखंड कुमायूँ

कोसा - उत्तराखंड कुमायूँ

जेमू - नेपाल/सिक्किम, [26 किलोमीटर लम्बा]

कंचनजंघा - नेपाल में स्थित है और लम्बाई 16 किलोमीटर

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