HISTORY Crash Course - 01

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UPSC IAS PCS, State PSC History Crass course, short Note for Revision 

प्रिय दोस्तों  आपके लिए  इस पोस्ट में  भारतीय इतिहास का परीक्षा के समय रिवीजन की दृष्टि से शार्ट नोट तैयार करके लाये हैं जो आपके विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के समय बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा। 

प्राचीन भारत

  • यूनानियों ने भारतवर्ष के लिए इण्डिया शब्द का प्रयोग किया, जबकि मध्यकालीन लेखकों ने इस देश को हिन्द अथवा हिन्दुस्तान नाम से सम्बोधित किया ।
  • भारत एक विशाल प्रायद्वीप है जो तीनों ओर से समुद्र से घिरा है । इसे आर्यावर्त, ब्रह्मावर्त, हिन्दुस्तान तथा इण्डिया जैसे नामों से भी जाना जाता है । प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के मुख्यत तीन स्रोत हैं
  1. साहित्यिक साध्य 
  2. विदेशियों के वृत्तान्त 
  3. पुरातात्विक साक्ष्य 


1.  साहित्यिक साक्ष्य 

  • साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत वेद, वेदांग, उपनिषद्, ब्राह्मण, आरण्यक, पुराण, रामायण, महाभारत, स्मृति ग्रन्थ तथा बौद्ध एवं जैन साहित्य आदि को शामिल किया जाता है ।




  • वेदों की संख्या चार है ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद तथा अथर्ववेद तथा वेदांग के अन्तर्गत शिक्षा, कल्प, ज्योतिष, व्याकरण, निरुक्त तथा छन्द आते हैं । इसके अलावा सभी वेदों के ब्राह्मण एवं आरण्यक है जिनसे हमें अनेक ऐतिहासिक एवं सामाजिक तथ्य प्राप्त होते हैं ।

  • बौद्ध ग्रन्थों में त्रिपिटक, निकाय तथा जातक आदि से अनेक ऐतिहासिक सामग्री मिलती है । बौद्ध ग्रन्थ दीपवंश, महावंश से मौर्यकालीन पर्याप्त जानकारी मिलती है । नागसेन रचित मिलिन्दपण्हो से हिन्द यवन शासक मेनान्डर के विषय में सूचना मिलती है ।

  • जातक में बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाओं का संकलन किया गया है । सुत्तपिटक में बुद्ध के उपदेश, विनयपिटक में भिक्षु - भिक्षुणियों से सम्बन्धित नियम तथा अभिधम्मपिटक में बौद्ध मतों की दार्शनिक व्याख्या की गई है ।

  • जैन - ग्रन्थ भगवती सुत्त में महावीर स्वामी के जीवन तथा समकालीन घटनाओं की जानकारी मिलती है।
  •  शुंगकाल में पतंजलि ने पाणिनी की अष्टाध्यायी पर महाभाष्य लिखा जिससे मौर्योत्तरकालीन जानकारी मिलती है । पतंजलि, पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे ।

  • अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण का पहला ग्रन्थ है , जिसकी रचना पाणिनी ने की थी । इसमें पूर्व मौर्यकाल की सामाजिक दशा का चित्रण मिलता है ।

  •  अर्थशास्त्र का लेखक कौटिल्य है , जिसे चाणक्य तथा विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है । अर्थशास्त्र में मौर्यकालीन नजनाताका मार जिता मिलता है । राजकीय व्यवस्था पर लिखी गई पहली पुस्तक है । 

  • संस्कृत भाषा में ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध लेखन कल्हण ने किया । कल्हण की राजतरंगिणी में कश्मीर के इतिहास का वर्णन है ।





प्राक् इतिहास


  • औजारों की प्रकृति के आधार पर प्राक् इतिहास को तीन भागों में बाँटा जाता है - पुरा पाषाणकाल (पेलियोलिथिक एज), मध्य पाषाणकाल (मेसोलिथिक एज) तथा नव पाषाण काल (नियोलिथिक एज)।

  • पुरापाषाण काल में मानव जीविकोपार्जन के लिए शिकार और खाद्य संग्रह पर निर्भर था ।

  •  नव पाषाणकाल में आग तथा पहिए का आविष्कार हुआ । इस समय की प्रमुख विशेषता खाद्य उत्पादन, पशुओं के उपयोग की जानकारी तथा स्थिर ग्राम्य जीवन का विकास था ।

  • उत्तर प्रदेश के बेलन घाटी में स्थित कोल्डीहवा नामक स्थान से चावल की कृषि का साक्ष्य मिला है ।

  • मनुष्य ने सबसे पहले जिस धातु का उपयोग आरम्भ किया वह ताँबा थी । ताँबे से जिस युग में औजार अथवा हथियार बनाए जाने लगे उसे ताम्र पाषाणकाल कहा जाता है ।






हड़प्पा सभ्यता / सिन्धु सभ्यता -


  • हड़प्पा सभ्यता का पता 19 वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने लगाया । 1921 ई . में दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल की खुदाई कराई , जिसमें एक वृहद नगरीय ढाँचे का अवशेष प्राप्त हुआ ।


  • 1922-23 ई . में राखलदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो स्थल की खुदाई के दौरान विभिन्न स्थलों की खुदाई से विकसित हड़प्पा सभ्यता का पता चला ।

हड़प्पा सभ्यता


प्रमुख स्थल 
उत्खननकर्ता 
वर्ष 
नदी 
हड़प्पा 
दयाराम साहनी 
1921 
रावी 
मोहनजोदड़ो 
राखलदास बनर्जी 
1922 
सिन्धु 
चन्हूदड़ो   
एन जी मजूमदार 
1931 
  सिन्धु 
कालीबंगा 
  बीबी लाल एवं बीके थापर 
1953 
घग्घर 
कोटदीजी 
फजल अहमद 
1953 
  सिन्धु 

रंगपुर 
रगनाथराव 
1953-54 
भादर 

रोपड़ 
यज्ञदत्त शर्मा 
1953-56 
सतलज 

लोथल 
रंगनाथ राव 
1957-58 
भोगवा 
बनावली 
रवीन्द्र सिंह बिष्ट 
1974 
रंगोई 



  • हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्र लगभग 12,99,600 वर्ग किमी में फैला है । यह सभ्यता उत्तर में कश्मीर के माण्डा से दक्षिण में भगवतराव तथा पश्चिम में बलूचिस्तान के सुत्कागेंडोर से पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर तक विस्तृत है ।


  • उत्खनन से प्राप्त बहुसंख्यक नारी मूर्तियों के कारण अनुमान लगाया जाता है कि समाज मातृसत्तात्मक था।


  • लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे । गेहूँ , जौ , तिल , दाले मुख्य खाद्यान्न थे । उत्तर अवस्था में चावल के प्रमाण भी मिलने लगे थे ।



धार्मिक जीवन

◆ सिन्धु घाटी के लोग मातृशक्ति में विश्वास करते थे ।
◆ मातृ देवी तथा पशुपति शिव की मूर्तियों तथा आकृतियों से इनकी आराधना की प्रवृत्ति स्पष्ट होती है ।
◆ लिंग पूजा प्रचलित थी । लोग अंधविश्वास तथा जादू - टोना में विश्वास करते थे । हवन हेतु बनाए गए हवन कुण्ड का साक्ष्य लोयल व कालीबंगा से प्राप्त हुआ है । स्वास्तिक हड़प्पा सभ्यता की देन है ।


◆ कालीबंगा से हलरेखा का साक्ष्य मिला है । व्यवस्थित सिंचाई का प्रमाण नहीं मिला है किन्तु जल - संग्रह के लिए बाँधों के निर्माण का साक्ष्य धौलावीरा से प्राप्त हुआ है ।


◆ मुहरों पर चित्रित जहाजों के डिजाइन हैं । लोथल से गोदीबाड़ा का साक्ष्य, फारस की मुहरे बाह्य व्यापार का संकेत देती हैं । कालीबंगा से मेसोपोटामिया की बेलनाकार मुहरें भी प्राप्त हुई


◆ हड़प्पा सभ्यता में वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी । राजस्थान के खेतड़ी से तौबा मँगाया जाता था ।


नगरीय योजना

◆ सभी भवन समान क्षेत्रफल में निर्मित है । ये सड़कों के किनारे एक आधार पर निर्मित हैं जिनके दरवाजे गलियों की ओर खुलते हैं ।


लिपि तथा लेखन कल


◆ सिन्धु लिपि ( हड़प्पा सभ्यता में प्रचलित लिपि ) चित्राक्षर लिपि है , जिसमें चित्रों के माध्यम से सम्प्रेषण का प्रयास हुआ है । इस लिपि को पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं पाई जा सकी है ।


पतन के कारण

विद्वानों ने इसके पतन के निम्न कारण बताए हैं
जलवायु परिवर्तन आरेल स्टीन , एनएन घोष
बाढ़ मार्शल, मैके, एसआर राव
जलप्लावन एमआर साहनी
आर्यों का आक्रमण हीलर, स्टुअर्ट पिग्गट
महामारी, बीमारी केयूआर केनेडी

वैदिक काल


◆ वैदिक संस्कृति के संस्थापक आर्य थे। 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. के कालखण्ड को वैदिक काल कहा जाता है ।
◆ आर्यों के जीवन को समझने के लिए इसे दो भागों में बाँटा जाता है। 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के . कालखण्ड को ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल, जबकि 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक के कालखण्ड को ' उत्तर वैदिक काल ' कहा जाता है।

ऋग्वैदिक काल

◆ ऋग्वेद की अनेक बातें अवेस्ता में मिलती हैं , जो ईरानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ है।
◆ ऋग्वेद में सप्त सैन्धव प्रदेश क्षेत्र को ब्रह्मावर्त भी कहा गया है । सामाजिक संरचना ऋग्वैदिक सामाजिक संरचना का आधार परिवार था । परिवार पितृसत्तात्मक था । परिवार के मुखिया को कुलप कहा जाता था, जिसे अन्य सदस्यों से अधिक महत्त्व प्राप्त होता था।
◆ महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने तथा राजनीतिक संस्थाओं में शामिल होने की स्वतन्त्रता भी प्राप्त थी। ऋग्वैदिक काल में अपाला, घोषा, विश्ववारा, लोपामुद्रा, सिक्ता जैसी विदुषी महिलाओं का उल्लेख है।
◆ ऋग्वैदिक समाज एक कबीलाई समाज था, जहाँ समतावादी तथा वर्णविहीन सामाजिक संरचना को महत्त्व दिया गया था। ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में चार वर्णो - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र की चर्चा मिलती है, किन्तु तब यह विभाजन जन्ममूलक न होकर कर्ममूलक था।
◆ बाल विवाह, तलाक, सती प्रथा, पर्दा प्रथा आदि का प्रचलन नहीं था, जबकि विधवा एवं नियोग प्रथा का प्रचलन था।

आर्थिक जीवन

◆ आर्यों का जीवन भौतिकता से प्रेरित था। अर्थव्यवस्था में पशुओं का महत्त्व सर्वाधिक था। गाय के लिए बुद्धो का विवरण ऋग्वेद में मिलता है । वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी। वैसे निष्क नामक एक सिक्के का उल्लेख भी मिलता है।

राजनीतिक व्यवस्था

◆ ऋग्वेद में दाशराज्ञ युद्ध का वर्णन आया जिसमे भरत जन के राजा सुदास ने रावी नदी के तट पर दस राजाओं के संघ को हराया था । भरत जन सरस्वती तथा यमुना नदियों के बीच के प्रदेश में निवास करते थे।
◆ सभा, समिति तथा विदथ जनप्रतिनिधि संस्थाएँ थीं। इन संस्थाओं में राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक प्रश्नो पर विचार किया जाता था। स्त्रियाँ इनमें भाग लेती थी।

धार्मिक जीवन

◆ इन्द्र, वरुण, सूर्य, मित्र, अग्नि, इत्यादि ऋग्वैदिक देवताओं में प्रमुख थे। वरुण को ऋतस्य गोपा ' कहा जाता था। उसे नैतिक व्यवस्था बनाए रखने वाला देवता माना जाता था। अग्नि को ' जाति वेदस ' कहा गया।
◆ ऋग्वेद का सबसे महत्त्वपूर्ण देवता इन्द्र था जिसे पुरन्दर कहा गया है। इसके बाद अग्नि एवं वरुण का स्थान था।
◆ सत्यमेव जयते ' मुण्डकोपनिषद् ' से तथा असतो मा सद्गमय ऋग्वेद से लिया गया है।



उत्तरवैदिक काल

उत्तरवैदिक काल के अध्ययन के लिए चित्रित धूसर मृद्भाण्ड और लोहे के उपकरण महत्त्वपूर्ण साक्ष्य है। इस काल में सामदेव, यजुर्वेद एवं अवर्ववेद तथा ब्राह्मण ग्रन्थों, अरण्यकों एवं उपनिषदों की रचना हुई। इस समय आर्यों का विस्तार पूर्व तथा दक्षिण - पूर्व की ओर होने लगा था तथा आर्य पंजाब से कुरुक्षेत्र अर्थात् गंगा - यमुना दोआब में फैल गए थे।

◆ सामाजिक संरचना छान्दोग्य उपनिषद् में पहली बार मनुष्य के जीवन को चार आश्रमों में बाँटा गया है - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास।

◆ आर्थिक जीवन निष्क, शतमान तथा कृष्णल जैसे सिक्कों की चर्चा मिलती है । वणिक संघों- गण तथा श्रेष्ठिन के अस्तित्व में आने की सूचना उत्तर वैदिक ग्रन्थों से भी मिलती है।

◆ राजनीतिक व्यवस्था उत्तर वैदिक काल में संग्रहित, भागदुध, गोवितकर्तन जैसे अधिकारियों का अस्तित्व सामने आया। प्रान्तीय शासन व पुलिस व्यवस्था भी सामने आई।

◆ धार्मिक जीवन उत्तर वैदिक काल में ही बहुदेववाद, वासुदेव सम्प्रदाय एवं षड्दर्शनो का बीजारोपण हुआ।





वैदिक साहित्य

◆ वेदो की संख्या चार है । ये है - ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद तथा अथर्ववेद , वेदों को संहिता भी कहा जाता है । वेदों के संकलन का श्रेय महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद - व्यास को है ।

ऋग्वेद
◆ ऋग्वेद 10 मण्डलों में विभाजित है । इसमें देवताओं की स्तुति में 1028 श्लोक है . जिसमे 11 बालखिल्य श्लोक है । ऋग्वेद में 10,462 मन्त्रों का संकलन है ।
◆ ऋग्वेद का पहला तथा 10 वाँ मण्डल क्षेपक माना जाता है । नौवें मण्डल में सोम की चर्चा है । प्रसिद्ध गायत्री मन्त्र ऋग्वेद के तीसरे मण्डल से लिया गया है , जिसमें सवित नामक देवता को सम्बोधित किया गया है ।
◆ उपनिषदों की कुल संख्या 108
◆ वेदांग की संख्या 6
◆ महापुराणों की संख्या 18




यजुर्वेद

◆ यजुर्वेद में अनुष्ठानो तथा कर्मकाण्डों में प्रयुक्त होने वाले श्लोको तथा मन्त्रों का संग्रह है । इसका गायन करने वाले पुरोहित अध्वर्यु कहलाते थे ।
यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों में रचित है । इसके दो पाठान्तर है 1. कृष्ण यजुर्वेद 2 शुक्ल यजुर्वेद

सामवेद

◆ सामवेद का सम्बन्ध संगीत से है तथा इसमें संगीत के विविध पक्षों का उल्लेख हुआ है । से भारतीय संगीत का जनक माना जाता है ।

अथर्ववेद

◆ अथर्ववेद के अधिकांश मन्त्रों का सम्बन्ध तन्त्र - मन्त्र या जादू - टोनो से है । रोग निवारण की आपधियों की चर्चा भी इसमें मिलती है । अथर्ववेद के मन्त्रों को भारतीय विज्ञान का आधार भी माना जाता है ।
◆ वेदांग व्याकरण की सबसे पहली तथा बापक रचना पाणिनी की अष्टाध्यायी है ।

वेदउपवेद एवं प्रमुख ब्राह्मण ग्रन्थ 
वेद   
उपवेद 
रचनाकार 
     ब्राह्मण  ग्रन्थ 
ऋग्वेद 
आयुर्वेद 
प्रजापति 
ऐतरेयकौषीतकी 
यजुर्वेद 
धनुर्वेद 
विश्वामित्र 
तैत्तिरीयशतपथताण्डव 
सामवेद 
गन्धर्ववेद 
नारद 
पंचविशजैमनीयषडविश 

अथर्ववेद 
शिल्प वेद 
   विश्वकर्मा 
गोपथ 

◆ उपनिषद् वेदों की दार्शनिक व्याख्या के लिए उपनिषदों की रचना की गई । जिसका शाब्दिक अर्थ एकान्त में प्राप्त ज्ञान है । 
◆ स्मृति साहित्य मनु स्मृति सबसे प्राचीन स्मृति ग्रन्थ है । इसकी रचना दूसरी शताब्दी ई.पू में शुंगकाल में हुई थी । 
◆ पुराण वस्तुतः ऐतिहासिक प्रवृत्तियों को सामने लाता है । पुराणों के संकलन का श्रेय वेदव्यास को है । 
◆ रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी । यह संस्कृत भाषा में है । महाभारत 18 पर्वो में विभक्त है । इसे जयसंहिता या शतसाहस्त्र संहिता भी कहा जाता है । इसकी रचना वेदव्यास ने की थी ।
◆  ' श्रीमद्भागवत गीता ' महाभारत के भीष्म पर्व का अंश है । 

भारतीय दर्शन

दर्शन 
प्रवर्तक 
दर्शन 
प्रवर्तक 
 सांख्य 
कपिल 
वैशेषिक 
कणाद 
न्याय 
गौतम 
पूर्व मीमांसा 
जैमिनी 
योग 
 पतंजलि 
उत्तर मीमांसा 
 बादरायण 




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