अनुपात विश्लेषण
( RATIO ANALYSIS )
वित्तीय विवरणों के विश्लेषण एवं निर्वचन की अनेक रीतियां और तकनीके हैं। अनुपात विश्लेषण ' इन तकनीकों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली उपकरण है।
अनुपात का आशय
(MEANING OF RATIO)
' अनुपात ' एक अकगणितीय अभिव्यक्ति है जो दो सम्बन्धित एवं एक - दसरे पर आधारित पदों के मध्य सम्बन्ध को स्पष्ट करती है । परिभाषा के रूप में एक ही जाति (same kind or unit) की दो मात्राओं, राशियों अथवा अंकों के बीच ऐसे सम्बन्ध को अनुपात कहते हैं, जिससे यह स्पष्ट हो कि उनमें से एक-दूसरे का कितने प्रतिशत, कितने गुना अथवा कौन - सा भाग है।
लेखांकन अनुपात का आशय
(MEANING OF ACCOUNTING RATIO)
लेखांकन अनुपात से आशय लेखांकन समंकों पर आधारित अनुपातों से है। दूसरे शब्दों में दो लेखांकन चरों (accounting variables) के मध्य अंकगणितीय सम्बन्ध को लेखांकन अनुपात कहा जाता है। जे. बेट्टी के अनुसार, “लेखांकन अनुपात शब्द का प्रयोग उस महत्वपूर्ण सम्बन्ध के लिए किया जाता है जो चिट्ठा, लाभ-हानि खाता, बजटरी नियन्त्रण व्यवस्था या लेखांकन व्यवस्था के किसी भी भाग में दिए समंकों के मध्य पाया जाता है।”
(“The term accounting ratio in used to describe simificant relationship which exist between figures shown inabalance sheet , inaprofit and lossaccountina budgetary control system or in any part of the accounting organization.” -- J . Betty)
लेखांकन अनुपात का सम्बन्ध महत्वपूर्ण इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह कारण एवं परिणामों पर आधारित होता है या सम्बन्धों के आधार पर विशिष्ट परिणाम निकालने में सहायता करता है।
उदाहरण के लिए, सकल लाभ अनुपात में विक्री (कारण) और सकल लाभ (परिणाम) के आधार पर सम्बन्ध निकालते हैं या चालू सम्पत्ति और चालू दायित्वों के मध्य सम्बन्धों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाल सकते है कि चालू दायित्वों का भुगतान करने की दृष्टि से चालू सम्पत्तियों की क्या स्थिति है।
अनुपातों की अभिव्यक्ति के प्रकार
(FORMS OF EXPRESSION OF RATIOS)
दो लेखांकन चरों के मध्य सम्बन्धों को निम्न रूपों में रखा जा सकता है :
1. साधारण अनुपात या शुद्ध अनुपात (Simple Ratio or Pure Ratio)
इसमें दो संख्याओं अथवा मदों के मध्य सम्बन्ध को सीधे रूप में दिखाया जाता है तो यह साधारण या शुद्ध अनुपात कहा जाता है। इसमें एक संख्या को दूसरे से भाग देकर भागफल (Quotient) के रूप में अनुपात रखा जाता है।
जैसे चालू सम्पत्ति 6,00,000 ₹ तथा चालू दायित्व 3,00,000 ₹ हो तो साधारण अनुपात के रूप में कहा जाएगा कि चालू सम्पत्ति और चालू दायित्व का अनुपात 2 : 1 है अथवा चालू सम्पत्ति चालू दायित्व के अनुपात में 2 है।
सामान्यतः तरलता के अनुपात (liquidity ratios) इसी रूप में व्यक्त किए जाते है।
2. प्रतिशत (Percentage) –
यदि दो संख्याओं के भागफल को 100 से गुणा कर दिया जाए तो अनुपात प्रतिशत के रूप में हो जाता है ।
उदाहरण के लिए, विक्री 5,00,000 ₹ तथा सकल लाभ 1,50,000 ₹
है तो विक्री पर सकल लाभ का अनुपात × 100 = 30% , कहा जाएगा। सामान्यतः लाभदायकता के अनुपात प्रतिशत के रूप में ही व्यक्त किए जाते हैं।
3. दर या समय (Rate or Time)
इस रूप में यह देखा जाता है कि एक संख्या दूसरी संख्या के कितने गुना है।
जैसे, विक्री 4,00,000 ₹ तथा स्टॉक 80,000 ₹ है तो यह कहा जाएगा कि स्टाक आवर्त
अनुपात विश्लेषण का आशय
(MEANING OF RATIO ANALYSIS)
अनुपात विश्लेषण वित्तीय विवरणों के विश्लेषण , तुलना एवं निर्वचन की तकनीक है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लेखांकन चरों (Accounting Variables) के आधार पर विभिन्न अनुपातों की गणना की जाती है और उनके आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं जो प्रवन्धकीय निर्णयन का आधार बनते हैं। अनुपात विश्लेषण में चार चरण होते है :
1. सम्बन्धित समंकों का चयन (Selection of Relevant data) - सर्वप्रथम विश्लेषण के उद्देश्यों के आधार पर वित्तीय विवरणों से सम्बन्धित समंको का चयन किया जाता है ।
2. अनुपातों की गणना (Calculation of Ratios) - उद्देश्यों या आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त अनुपातों की गणना की जाती है।
3. अनुपातों की तुलना (Comparison of Ratios) - Kkत किए अनुपातों की फर्म के पिछले वर्षों से या अन्य फमों के अनुपातो से या अनुपातो के आदर्श स्तरों से तुलना की जाती है।
4. अनुपातों का निर्वचन (Interpretation of Ratios) - अन्त में अनुपातों के अध्ययन एवं तुलना के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं
अनुपात विश्लेषण के उद्देश्य या महत्व
(OBJECTIVES OR IMPORTANCE OF RATIO ANALYSIS)
अथवा
अनुपात विश्लेषण के लाभ
(ADVANTAGES OF RATIO ANALYSIS)
अनुपात विश्लेषण वित्तीय विश्लेषण की एक महत्वपूर्ण तकनीक है । अनुपात विश्लेषण जटिल लेखांकन समंकों को सरल एवं संक्षिप्त रूप प्रदान करता है, उनको व्यावहारिक अर्थ प्रदान करता है तथा उपक्रम की वित्तीय सुदृढ़ता तथा कार्य संचालन की कुशलता के सम्बन्ध में उपयोगी संकेत प्रदान करता है।
संक्षेप में अनुपात विश्लेषण के लाभ या उद्देश्य निम्न प्रकार हैं :
1. लेखांकन संख्याओं के सरलीकरण में सहायक (Useful in Simplifying Accounting Figures)लेखांकन अनुपात लेखांकन संख्याओं को सरल, संक्षिप्त एवं व्यवस्थित रूप प्रदान करते है, जिससे उन्हें सुविधा से और उचित प्रकार से समझा जा सके। वास्तव में लेखांकन की निरपेक्ष संख्याएं यह नहीं बता पाती जो उन संख्याओं के सम्बन्चों के अनुपात के रूप में स्पष्ट हो जाता है।
2. वित्तीय स्थिति के विश्लेषण में उपयोगी (Useful in Financial Position Analysis) लेखांकन अनपातों से फर्म की वित्तीय स्थिति की जानकारी मिलती है, जो जहां एक ओर फर्म के अपने निर्णयों में सहायक होती है. यहां दूसरी ओर बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा विनियोक्ताओं के लिए भी उपयोगी होती है।
3. संचालन कार्यकशलता के मापन में उपयोगी (Useful in Assessing the operational Efficiency) लेखांकन अनुपातों के आधार पर फर्म की कार्यकुशलता , लाभदायकता तथा कार्य निष्पादन को उचित रूप से मापा जा सकता है ।
4. वित्तीय पूर्वानुमान एवं नियोजन में सहायक (Helpful in Financial Forecasting and Planning) यदि अनेक वर्षों के लेखाकन अनुपात उपलब्ध होते हैं तो ये प्रवृत्ति के रूप में भावी अनुमान लगाने तथा वित्तीय नियोजन करने में सहायक होते हैं।
5. व्यवसाय की कमजोरियों के निर्धारण में उपयोगी (Useful in Locating the Weak Spots of the Business) लेखांकन अनुपातों से व्यवसाय की वित्तीय कमजोरियों का भी पता लगाया जा सकता है। यह कमजोरियां तरलता, लाभदायकता अथवा क्रियाशीलता किसी भी क्षेत्र में हो सकती हैं। इसके आधार पर उन कमजोरियों को दूर करने के प्रयास भी किए जा सकते हैं।
6. तुलनात्मक अध्ययन में उपयोगी (Useful in Comparative Study) लेखांकन अनुपातों के आधार पर एक ही फर्म की विभिन्न वर्षों की, एक ही फर्म में विभिन्न विभागों अथवा एक फर्म की अन्य फों से वित्तीय कार्यकशलता की दष्टि से तलना की जा सकती है जो प्रवन्धकीय निर्णयों में काफी उपयोगी सिद्ध होती है।
7. सम्प्रेषण एवं समन्वय में सहायता (Helpful in Communication and Co - ordination) अनुपातों के आधार पर फर्म की वित्तीय सढता अथवा कमजोरियों को अधिक सरल एवं समझने योग्य रूप में सम्बन्धित पक्षों तक पहुंचाया जा सकता है। इस आधार पर फर्म के विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित करने में भी सहायता मिलती है।
8. नियन्त्रण में उपयोगी (Useful in Control) - लेखांकन अनुपातों की गणना के पश्चात् उनके मानक या आदर्श स्तरों से तुलना करके विचरण जात किए जा सकते है तथा उन विचरणों के समाधान क लिए उचित कार्यवाही की जा सकती है । इस प्रकार अनुपात विश्लेषण प्रबन्धकीय नियन्त्रण का महत्वपूर्ण उपकरण सिद्ध होता है।
अनुपात विश्लेषण की सीमाएं
(LIMITATIONS OF RATIO ANALYSIS)
यद्यपि अनुपात विश्लेषण वित्तीय प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण उपकरण है , लेकिन व्यवहार में इसकी कुछ सीमाएं भी हैं । अतः अनुपातों का अर्थपूर्ण एवं उचित प्रयोग करने के लिए इन सीमाओं को ध्यान में रखना आवश्यक है। अनुपात विश्लेषण की मुख्य सीमाएं निम्न प्रकार है :
1. एक अनुपात का सीमित महत्व (Limited use of a Single Ratio)- एक अनुपात का अपने आप में कोई विशिष्ट महत्व नहीं होता। वित्तीय विवरणों के उचित विश्लेषण एवं निर्वचन के लिए अनेक अनुपातों की गणना करनी होती है। इसलिए यह कहा जाता है कि "एक अकेला अनुपात अपने आप में अर्थहीन होता है, वह सम्पूर्ण चित्र प्रस्तुत नहीं करता।"
‘A single ratio in itself is meaningless, it does not furnish complete picture. ’
2 मूल आंकडों की गलती का प्रभाव ( Effect . of Incorrect Original Data ) - यदि वित्तीय विवरणों के मूल आंकड़ों में ही कमियां या गलतिया हो या आंकड़ों को अच्छा परिणाम दिखाने की दृष्टि से सज्जित (window - dressing) किया गया हो तो अनुपातों के निष्कर्ष भी भ्रमपूर्ण निकलेंगे।
3. लेखांकन शब्दावली के विभिन्न अर्थ (Different meanings to Accounting Terms)- लेखांकन शब्दावली में एक ही शब्द के अनेक अर्थ लगाए जाते है जैसे लाभ, व्याज एवं कर से पूर्व का भी हो सकता है और बाद का भी। इसी प्रकार विनियोजित पूंजी (capital employed) के कई अर्थ हैं। आवर्त (turnover) अनुपात बिक्री की रकम के आधार पर भी निकाले जा सकते है और बिक्री के लागत के आधार पर भी। अतः जब तक इनका अर्थ सुनिश्चित न कर लिया जाए, अनुपात भ्रमपूर्ण एवं गैर-तुलना योग्य हो सकते हैं।
4. लेखांकन नीतियों में भिन्नता (Variations in Accounting Policies) - जब विभिन्न फर्मों के लेखांकन अनुपातों की तुलना की जाए तो उनका लेखांकन नीतियों की जानकारी कर लेनी चाहिए। यह हो सकता है कि विभिन्न फमें विभिन्न लेखांकन नीतियां अपना रही हो। यह भिन्नता हास की पद्धति, स्टॉक का मूल्यांकन इत्यादि के सम्बन्ध में हो सकती है।
5. मूल्य स्तर परिवर्तन का प्रभाव (Effect of Price Level Changes) - मूल्य स्तर में परिवर्तन का ध्यान न रखने पर भी अनुपात भ्रमपूर्ण निष्कर्ष दे सकते हैं । उदाहरण के लिए, स्थायी सम्पत्तियां सन् 1995 में खरीदी गई तो सन् 1995 में स्थायी सम्पत्ति से बिक्री के अनुपात की तुलना में 2009 में यह अनुपात बहुत अधिक हो जाएगा, क्योंकि बिक्री की राशि चालू मूल्य पर होगी, जबकि स्थायी सम्पत्ति की राशि सन 1995 के मूल्य स्तर में से भी हास घटाकर होगा।
6. निरपेक्ष समंकों के अभाव में भ्रमपूर्ण परिणाम (Misleading Results in the Absence of Absolute Data) अनेक बार निरपेक्ष समकों के अभाव में भ्रमपूर्ण परिणाम निकाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक फर्म की बिक्री 10,000 ₹ से बढ़कर 20,000 ₹ हो गई अर्थात् बिक्री में 100 % की वृद्धि हुई। दूसरी फर्म की बिक्री 50,000 ₹ से बढ़कर 70,000 ₹ हुई अर्थात 40 % की वृद्धि हुई। इससे लगता है कि प्रथम फर्म अधिक सक्रिय है, लेकिन वास्तव में निरपेक्ष राशि के रूप में दूसरी फर्म अधिक सक्रिय रही है।
7. गुणात्मक तत्वों की उपेक्षा (Ignores Qualitative Factors) - अनुपात विश्लेषण संख्यात्मक विश्लेषण की तकनीक है और इस कारण गुणात्मक तत्व की उपेक्षा हो सकती है। उदाहरण के लिए, एक फर्म एकाधिकारी शक्ति का दुरुपयोग करके अधिक लाभ की दर से लाभ अर्जित कर रही हो, जबकि दूसरी फर्म सामान्य लाभ की दर पर ही अपने माल का विक्रय कर रही हो।
8. ऐतिहासिक विश्लेषण (Historical Analysis) - अनुपात विश्लेषण एक ऐतिहासिक विश्लेषण है अर्थात् भूतकाल के तथ्यों एवं समंकों पर आधारित है, जबकि व्यावसायिक निर्णय लेने एवं नियोजन करने के लिए भविष्यकथन विश्लेषण (predictive analysis) की भी आवश्यकता होती है।
9. प्रमाप अनुपातों के निर्धारण में कठिनाई (Difficulty in Evolving Standard Ratio) - सभी उद्योगों के लिए सभी परिस्थितियों में विभिन्न लेखांकन अनुपातों का प्रमाप स्तर निर्धारण करना सरल नहीं है। इस कारण अनुपातों की तुलना या निष्कर्ष निकालने में कठिनाई आ सकती है।
10. व्यक्तिगत पक्षपात (Personal Bias) - अनुपात वित्तीय विश्लेषण के एक साधन है अर्थात् स्वयं में एक साध्य नहीं है। इसका महत्वपूर्ण पहलू इनसे उचित निष्कर्ष निकालना है, लेकिन विभिन्न व्यक्ति अपने दृष्टिकोण से उन्हीं अनुपातों का विभिन्न अर्थ निकाल सकते हैं।
11. वित्तीय विवरणों के स्थानापन्न नहीं (Not as Substitute of Financial Statements)- अनुपात विश्लेषण वित्तीय विवरणों के अध्ययन का एक उपकरण है, लेकिन उसका स्थानापन्न नहीं है अर्थात अनुपातों को उचित प्रकार से तभी समझा जा सकता है, जबकि उनके वित्तीय विवरण भी साथ में हों।
अनुपात विश्लेषण की उपर्युक्त सीमाओं का अर्थ यही है कि अनुपातों की गणना सावधानी से करनी चाहिए तथा उनसे निष्कर्ष निकालने में पूर्ण होशियारी रखनी चाहिए ।
अनुपातों का वर्गीकरण
(CLASSIFICATION OF RATIOS)
लेखांकन अनुपातों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर और विभिन्न रूपों में किया जाता है, लेकिन सुविधा एवं सरलता की दृष्टि से अनुपातों को निम्न वों में विभाजित किया जा सकता है।
(I) लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratios) | (II) आवर्त अथवा क्रियाशीलता अनुपात (Turnover or Activity Ratios) | (III) वित्तीय अनुपात (Financial Ratios) |
(I) लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratios)
सम्पूर्ण लाभदायकता अनुपात
(Over-all Profitability Ratios)
सामान्य लाभदायकता अनुपात
(General Profitability Ratios)
(a) सकल लाभ अनुपात (Gross Profit Ratio) |
(2) शुद्ध लाभ अनुपात (Net Profit Ratio) |
(3) संचालन (परिचालन) अनुपात (Operating Ratio) |
(4)व्यय अनुपात (Expenses Ratio) |
स्वामित्व कोषों अथवा अंशधारियों के निवेश पर प्रत्याय (Return on Proprietor's Funds or Shareholder's Investment) |
समता पूंजी पर प्रत्याय (Return on Equity Share) |
विनियोजित पूंजी पर प्रत्याय (Return on Capital Employed) |
प्रति अंश अर्जन (Earning Per Share or E.P.S.) |