लेखांकन (Accounting)
व्यावसायिक वातावरण ने लेखापाल को संगठन एवं समाज, दोनों में अपनी भूमिका एवम् कार्यों के पुनः मूल्यांकन के लिए बाध्य कर दिया है। लेखापाल की भूमिका अब मात्र व्यापारिक सौदों के हिसाब लेखक से निर्णायक मंडल को उपयुक्त सूचना उपलब्ध कराने वाले लेखक सदस्य के रूप में हो गई है।
विस्तृत रूप से लेखांकन आज मात्र पुस्त-लेखन एवं वित्तीय प्रलेख तैयार करना ही नहीं बल्कि उससे बहुत आगे है। लेखापाल आज नये विकसित क्षेत्रों, जैसे - न्यायलिक लेखांकन (कंप्यूटर हैकिंग एवं इन्टरनैट पर बड़े पैमाने में धन की चोरी जैसे अपराधों को हल करना), ई-कामर्स (वैब-आधारित भुगतान प्रणाली), वित्तीय नियोजन पर्यावरण लेखांकन आदि में कार्य करने के योग्य हैं।
इस अनुभूति का कारण है कि आज लेखांकन प्रबन्धकों एवं दूसरे इच्छुक व्यक्तियों को वह सूचनाएँ प्रदान करने में सक्षम है जो उन्हें निर्णय लेने में सहायता प्रदान कर सकें। समय के साथ लेखांकन का यह पक्ष इतना अधिक महत्वपूर्ण बन गया है कि आज यह सूचना प्रणाली के स्तर तक पहुँच गया है। एक सूचना प्रणाली के रूप में यह किसी भी संगठन की आर्थिक सूचनाओं से संबंधित आंकड़े एकत्रित कर उनका संप्रेषण उन विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं तक करता है, जिनके निर्णय एवं क्रियाएं संगठन के प्रदर्शन को प्रभावित करती है।
अतः यह परिचय रूपी प्रारंभिक अध्याय इसी संदर्भ में लेखांकन की प्रकृति, आवश्यकता एवं क्षेत्र की व्याख्या करता है।
इस अनुभूति का कारण है कि आज लेखांकन प्रबन्धकों एवं दूसरे इच्छुक व्यक्तियों को वह सूचनाएँ प्रदान करने में सक्षम है जो उन्हें निर्णय लेने में सहायता प्रदान कर सकें। समय के साथ लेखांकन का यह पक्ष इतना अधिक महत्वपूर्ण बन गया है कि आज यह सूचना प्रणाली के स्तर तक पहुँच गया है। एक सूचना प्रणाली के रूप में यह किसी भी संगठन की आर्थिक सूचनाओं से संबंधित आंकड़े एकत्रित कर उनका संप्रेषण उन विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं तक करता है, जिनके निर्णय एवं क्रियाएं संगठन के प्रदर्शन को प्रभावित करती है।
अतः यह परिचय रूपी प्रारंभिक अध्याय इसी संदर्भ में लेखांकन की प्रकृति, आवश्यकता एवं क्षेत्र की व्याख्या करता है।
लेखांकन का अर्थ
वर्ष 1941 में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक एकाउटेंट्स ( American Institute of Certified Public Accountants (AICPA)) ने लेखांकन की परिभाषा इस प्रकार दी हैं — लेखांकन का संबंध उन लेन-देनों एंव घटनाओं, जो पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से वित्तीय प्रकृति के होते हैं, मुद्रा के रूप में प्रभावशाली ढंग से लिखने, वर्गीकृत करने, संक्षेप में व्यक्त करने एवं उनके परिणामों की विश्लेषणात्मक व्याख्या करने की कला से है।उत्तरोत्तर आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप लेखांकन की भूमिका एवं क्षेत्र का भी विस्तार हुआ है।
वर्ष 1966 में अमेरिकन एकाउटिंग एसोसिएशन (AAA) ने लेखांकन को इस प्रकार परिभाषित किया — "लेखांकन आर्थिक सूचनाओं को पहचानने, मापने और संप्रेषित करने की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके
आधार पर सूचनाओं के उपयोगकर्त्ता तर्कयुक्त निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।"
1970 में अकाउटिंग प्रिन्सीपल बोर्ड ऑफ एआईसीपीए ने कहा कि लेखांकन का कार्य मुख्य रूप से आर्थिक इकाईयों के संबंध में ऐसी गुणात्मक सूचनाएं उपलब्ध कराना है, जो प्रमुख रूप से वित्तीय प्रकृति की होती हैं, और जो आर्थिक निर्णय लेने में उपयोगी होती हैं।
उपरोक्त विवरण के आधार पर लेखांकन को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि लेखांकन संगठन की आर्थिक घटनाओं को पहचानने, मापने और लिखकर रखने की ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम सूचनाओं से संबंधित आंकड़े उपयोगकर्ताओं तक संप्रेषित किये जा सकें।
आधार पर सूचनाओं के उपयोगकर्त्ता तर्कयुक्त निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।"
1970 में अकाउटिंग प्रिन्सीपल बोर्ड ऑफ एआईसीपीए ने कहा कि लेखांकन का कार्य मुख्य रूप से आर्थिक इकाईयों के संबंध में ऐसी गुणात्मक सूचनाएं उपलब्ध कराना है, जो प्रमुख रूप से वित्तीय प्रकृति की होती हैं, और जो आर्थिक निर्णय लेने में उपयोगी होती हैं।
उपरोक्त विवरण के आधार पर लेखांकन को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि लेखांकन संगठन की आर्थिक घटनाओं को पहचानने, मापने और लिखकर रखने की ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम सूचनाओं से संबंधित आंकड़े उपयोगकर्ताओं तक संप्रेषित किये जा सकें।
लेखांकन की प्रकृति को समझने के लिए हमें परिभाषा के निम्न संबंधित पहलूओं को समझना आवश्यक हैः
- आर्थिक घटनाएं
- पहचान, मापन, अभिलेखन एवं संप्रेषण
- संगठन
- सूचना से सबंधित उपयोगकर्ता
लेखांकन का इतिहास एवं विकास
लेखांकन की अद्भुत परंपरा है। लेखांकन का इतिहास उतना ही पुराना है जितनी सभ्यता। लेखांकन के बीज पहली बार शायद ईसा के 4000 वर्ष पूर्व बेबीलोनियां एवं इजिप्ट में बो दिये गये थे जहाँ मजदूरी एवं करों के भुगतान सम्बन्धी लेन-देनों का लेखा मिट्टी की एक पट्टी पर किया जाता था। इतिहास साक्षी है कि इजिप्ट के लोग अपने खज़ाने, जिनमें सोना एवं अन्य दूसरी कीमती वस्तुएं रखी जाती थी, के लिए एक प्रकार के लेखांकन का प्रयोग करते थे और वे माहवार ब्यौरा राजा को भेजते थे। बेबीलोनीयां जिसे वाणिज्य नगरी कहा जाता था, वाणिज्य के लेखांकन का उपयोग धोखाधड़ी एवं अक्षमता के कारण होने वाली हानि को उजागर करने के लिए किया जाता था। ग्रीस में लेखांकन का प्रयोग प्राप्त आगम को खज़ानों में आबंटन, कुल प्राप्तियों, कुल भुगतानों एवं सरकारी वित्तीय लेन-देनों के शेष का ब्यौरा रखने के लिए किया जाता था। रोमवासी विवरण-पत्र अथवा दैनिक बही का प्रयोग करते थे जिनमें प्राप्ति एवं भुगतान का अभिलेखन किया जाता था तथा उनसे प्रतिमाह खाता बही में खतौनी की जाती थी।
(700 वर्ष ईसा पूर्व से 400 ई.) चीन में तो 2000 वर्ष ईसवी पूर्व में ही बहुत ही परिष्कृत रूप में राजकीय लेखांकन का उपयोग होता था। भारत में लेखांकन का प्रचलन 2300 शताब्दी पूर्व कौटिल्य के समय से माना जा सकता है जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य में एक मंत्री था तथा जिसने अर्थशास्त्र के नाम से एक पुस्तक लिखी थी जिसमें लेखांकन अभिलेखों को कैसे रखा जाये का वर्णन किया गया था।
लूकस पेसिओली, जो व्यापारी क्षेणी से संबंध रखते थे, की पुस्तक सुमा-डे-अरिथमट्रिका, जयोमेट्रिका, प्रोपोरशनालिटि पर प्रोपोरशन (अंक गणित एवं रेखा गणित के पुनर्वालोकन के अंश), को द्विअंकन पुस्तपालन पर पहली पुस्तक माना गया है। इस पुस्तक के एक भाग में व्यवसाय एवं पुस्त-पालन के सम्बन्ध में लिखा है। पेसियोली ने यह दावा कभी नहीं किया कि वह द्विअंकन, पुस्त-पालन का आविष्कारक हैं। उसने तो इसके ज्ञान का विस्तार किया था। इससे ऐसा लगता है कि शायद उसने समकालीन पुस्त-पालन ग्रन्थों को अपनी इस उत्तम रचना का आधार बनाया।
लूकस पेसिओली, जो व्यापारी क्षेणी से संबंध रखते थे, की पुस्तक सुमा-डे-अरिथमट्रिका, जयोमेट्रिका, प्रोपोरशनालिटि पर प्रोपोरशन (अंक गणित एवं रेखा गणित के पुनर्वालोकन के अंश), को द्विअंकन पुस्तपालन पर पहली पुस्तक माना गया है। इस पुस्तक के एक भाग में व्यवसाय एवं पुस्त-पालन के सम्बन्ध में लिखा है। पेसियोली ने यह दावा कभी नहीं किया कि वह द्विअंकन, पुस्त-पालन का आविष्कारक हैं। उसने तो इसके ज्ञान का विस्तार किया था। इससे ऐसा लगता है कि शायद उसने समकालीन पुस्त-पालन ग्रन्थों को अपनी इस उत्तम रचना का आधार बनाया।
डेबिट शब्द इटली के शब्द debito से निकला है जो लेटिन शब्द debita एवं debeo शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है स्वामी का ऋणी होना।
Credit शब्द इटली के Credito शब्द से निकला है जो लेटिन शब्द Creda से निकला है जिसका अर्थ होता है (स्वामी में विश्वास या स्वामी की देनदारी)।
द्विअंकन प्रणाली को समझाते हुए पेसियोली ने लिखा कि सभी प्रविष्टियां दो बार अंकित की जाती है अर्थात् यदि आप एक लेनदार बनाते हैं तो आपको एक देनदार बनाना होगा। उसका कहना था कि एक व्यापारी के उत्तरदायित्वों में अपने व्यवसाय में ईश्वर की महत्ता को बढ़ाना, व्यवसाय के कार्यो में नैतिकता तथा लाभ कमाना सम्मिलित है। उसने विवरण-पत्र, रोजनामचा, खाता बही एवं विशिष्ट लेखांकन प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की है।
1. आर्थिक घटनाएं
व्यावसायिक संगठनों का संबंध आर्थिक घटनाओं से होता है। आर्थिक घटना से तात्पर्य किसी व्यावसायिक संगठन में होने वाले ऐसे आर्थिक लेन-देनों से है जिसके परिणामों को मुद्रा रूप में मापा जा सकता हो। उदाहरणार्थ, मशीन का क्रय, उसके स्थापना एवं विनिर्माण के लिए तैयार करना एक घटना है जिसमें कुछ वित्तीय लेन-देन समाहित हैं,जैसे — मशीन का क्रय, मशीन का परिवहन, मशीन स्थापना स्थल को तैयार करना, स्थापना पर व्यय एवं परीक्षण संचालन। इस प्रकार लेखांकन किसी आर्थिक घटना से संबंधित सौदों के समूह की पहचान करता है।
किसी घटना में संगठन एवं किसी बाहर के व्यक्ति के बीच लेन-देन है तो इसे बाह्य घटना कहेंगे। इस प्रकार के लेन-देन के उदाहरण नीचे दिये हैंः
आंतरिक घटना एक एेसी वित्तीय घटना है जो पूर्णतः किसी उद्यम के आंतरिक विभागों के बीच घटित होती है। उदाहरण के लिए संग्रहण विभाग द्वारा कच्चे माल अथवा कलपुर्जों की विनिर्माण विभाग को आपूर्ति, कर्मचारियों को मजदूरी का भुगतान आदि।
किसी घटना में संगठन एवं किसी बाहर के व्यक्ति के बीच लेन-देन है तो इसे बाह्य घटना कहेंगे। इस प्रकार के लेन-देन के उदाहरण नीचे दिये हैंः
- ग्राहक को माल का विक्रय।
- कंपनी द्वारा अपने ग्राहकों को सेवाएँ प्रदान करना।
- आपूर्तिकर्ताओं से माल का क्रय।
- मकान मालिक को मासिक किराये का भुगतान।
आंतरिक घटना एक एेसी वित्तीय घटना है जो पूर्णतः किसी उद्यम के आंतरिक विभागों के बीच घटित होती है। उदाहरण के लिए संग्रहण विभाग द्वारा कच्चे माल अथवा कलपुर्जों की विनिर्माण विभाग को आपूर्ति, कर्मचारियों को मजदूरी का भुगतान आदि।
2. पहचान करना, मापना, लेखा-जोखा एवं सम्प्रेषण
A. पहचान
इसका अर्थ यह निर्धारित करना है किन लेन-देनों का अभिलेखन किया जाए अर्थात् इसमें उन घटनाओं की पहचान करना, जिनका अभिलेखन किया जाना है। इसमें संगठन से संबंधित सभी क्रियाओं का अवलोकन कर केवल उन्हीं क्रियाओं का चयन किया जाता है जो वित्तीय प्रकृति की हैं।लेखा-पुस्तकों में लिखने का निर्णय लेने से पहले व्यावसायिक लेन-देन एवं दूसरी आर्थिक घटनाओं का मूल्यांकन किया जाता है। उदाहरणार्थ मानव एवं संसाधनों का मूल्य, प्रबन्धकीय नीतियों में परिवर्तन अथवा कर्मचारियों की नियुक्ति महत्वपूर्ण घटनाएं हैं लेकिन इनमें से किसी को भी लेखा-पुस्तकों में नहीं लिखा जाता। यद्यपि जब भी कंपनी नकद अथवा उधार क्रय अथवा विक्रय करती है अथवा वेतन का भुगतान करती है तो इसे लेखा पुस्तकों में लिखा जाता है।
यदि किसी घटना को मौद्रिक रुप में प्रमापीकरण सम्भव नहीं है तो इसका वित्तीय लेखों में लेखन नहीं
किया जाएगा। इसी कारणवश प्रबन्ध निदेशक की नियुक्ति, महत्त्वपूर्ण अनुबंध व कर्मचारियों की
बदली जैसी आवश्यक सूचनाओं का लेखा-पुस्तकों में नहीं किया जाएगा।
लेखांकन सूचना प्रणाली को इस प्रकार से बनाना चाहिए कि सही सूचना, सही व्यक्ति को सही समय पर संप्रेषित हो सके। प्रलेख उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं को देखते हुए अभिलेख दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या फिर त्रैमासिक हो सकते हैं। इस संप्रेषण प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण तत्व लेखापाल की योग्यता एवं कार्य उपयुक्त सूचना के प्रस्तुतिकरण में है।
B. मापन
इसका अर्थ है मौद्रिक इकाई के द्वारा व्यावसायिक लेन-देनों का वित्तीय प्रमापीकरण (अनुमानों, मौद्रिक आधारों रुपए व पैसों की इकाइयों का अभिलेखन के लिए प्रयोग) अथ।ρत् मापन की इकाई के रूप में रुपये पैसे।यदि किसी घटना को मौद्रिक रुप में प्रमापीकरण सम्भव नहीं है तो इसका वित्तीय लेखों में लेखन नहीं
किया जाएगा। इसी कारणवश प्रबन्ध निदेशक की नियुक्ति, महत्त्वपूर्ण अनुबंध व कर्मचारियों की
बदली जैसी आवश्यक सूचनाओं का लेखा-पुस्तकों में नहीं किया जाएगा।
C. अभिलेखन
जब एक बार आर्थिक घटनाओं की पहचान व मापन वित्तीय रूप में हो जाती है तो इन्हें मौद्रिक इकाइयों में लेखा-पुस्तकों में कालक्रमानुसार (तिथिवार) अभिलिखित कर लिया जाता है। अभिलेखन इस प्रकार से किया जाता है कि आवश्यक वित्तीय सूचना को स्थापित परम्परा के अनुसार सारांश निकाला जा सके एवं जब भी आवश्यकता हो उसे उपलब्ध किया जा सके।C. संप्रेषण
आर्थिक घटनाओं की पहचान की जाती है उन्हें मापा जाता है एवं उनका अभिलेखन किया जाता है जिससे प्रसंगानुकूल सूचना तैयार होती है एवं इसका, प्रबन्धकों एवं दूसरे आंतरिक एवं बाह्य उपयोगकर्ताओं को, एक विशिष्ट रूप में सम्प्रेषण होता है। सूचना का लेखा प्रलेखों के माध्यम से नियमित रूप से संप्रेषित किया जाता है। इन प्रलेखों द्वारा दी गई सूचना उन विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं के लिए उपयोगी होती है जो उद्यम की वित्तीय स्थिति एवं प्रदर्शन के आकलन, व्यावसायिक क्रियाओं के नियोजन एवं नियंत्रण तथा समय-समय पर आवश्यक निर्णय लेने में रुचि रखते हैं।लेखांकन सूचना प्रणाली को इस प्रकार से बनाना चाहिए कि सही सूचना, सही व्यक्ति को सही समय पर संप्रेषित हो सके। प्रलेख उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं को देखते हुए अभिलेख दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या फिर त्रैमासिक हो सकते हैं। इस संप्रेषण प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण तत्व लेखापाल की योग्यता एवं कार्य उपयुक्त सूचना के प्रस्तुतिकरण में है।
3. संगठन
संगठन से अभिप्राय किसी व्यावसायिक उद्यम से है जिनका उद्देश्य लाभ कमाना है अथवा नहीं। क्रियाओं के आकार एवं व्यवसाय के परिचालन स्तर के आधार पर यह एकल स्वामित्व इकाई, साझेदारी फर्म, सहकारीम समिति या कंपनी, स्थानीय निकाय, नगरपालिका अथवा कोई अन्य संगठन हो सकता है।
महत्वपूर्ण बिन्दु
उपयोगकर्त्ताओं को लेखांकन सूचना की आवश्यकता क्यों होती है।उपयोगकर्त्ता लेखांकन सूचना की मांग विभिन्न उद्देश्यों से करते हैंः
- स्वामी अंशधारी इनका उपयोग यह जानने के लिए करते हैं कि क्या वे अपने निवेश पर पर्याप्त वापसी प्राप्त कर रहे हैं एवं अपनी कंपनी/व्यवसाय के वित्तीय स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए करते हैं।
- निदेशक/प्रबन्धक इनका उपयोग निष्पादन का मूल्यांकन करने हेतु आंतरिक एवं बाह्य दोंनों प्रकार की तुलना करने के लिए करते हैं। अपनी कंपनी की शक्ति एवं कमी का निर्धारण करने के लिए वह अपनी कंपनी के वित्तीय विश्लेषण की तुलना उद्योग के आंकड़ो से कर सकते हैं। प्रबन्धक यह भी सुनिश्चित करना
- चाहते हैं कि कंपनी संगठन में विनियोजित राशि की पर्याप्त वापसी आ रही है तथा कंपनी संगठन अपने
- ऋणों को चुकाने में सक्षम हैं एवं वह सम्पन्न बना रहता है।
- लेनदार (ऋणदाता) यह जानने को उत्सुक होते हैं कि क्या उनके द्वारा दिए गए ऋण का भुगतान समय
- पर हो सकेगा एवं विशेष रूप से वित्तीय तरलता को देखते हैं जो किसी कंपनी/संगठन के ऋणों की देयता के समय इनके भुगतान की क्षमता को दर्शाती है।
- भावी निवेशक यह निश्चित करने के लिए इनका उपयोग करतें हैं कि उन्हें अपना धन इस कंपनी/संगठन में लगाना चाहिए अथवा नहीं।
- सरकार एवं कंपनी रजिस्ट्रार, कस्टम विभाग, रिजर्व बैंक अॉफ इंडिया आदि नियमन संस्थाओं को विभिन्न करों के भुगतान के सम्बन्ध में सूचना चाहिए। ये कर हैं - वैट, आयकर, आबकारी एवं उत्पाद शुल्क जो निवेशकों एवं लेनदारों (ऋणदाता) के हितों की रक्षा कर सके एवं समय-समय पर कंपनी अधिनियम
- 2013 एवं SEBI द्वारा निश्चित वैधानिक दायित्वों को पूरा करा सकें।
4. सूचना के इच्छुक उपयोगकर्त्ता
लेखांकन का संबंध व्यवसाय की वित्तीय सूचना के संप्रेषण से है तथा इसे व्यवसाय की भाषा भी कहा जाता है। अनेक उपयोगकर्त्ताओं को महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए वित्तीय सूचना की आवश्यकता होती है। इन उपयोगकर्त्ताओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है – आंतरिक उपयोगकर्ता एवं बाह्य उपयोगकर्त्ता।आंतरिक उपयोगकर्त्ता में सम्मिलित हैंः मुख्य कार्यकारी, वित्तीय प्राधिकारी, उपप्रधान, व्यावसायिक इकाई प्रबन्धक, संयन्त्र प्रबन्धक, स्टोर प्रबन्धक, लाइन पर्यवेक्षक आदि।
बाह्य उपयोगकर्त्ता हैंः वर्तमान एवं भावी निवेशक (शेयर धारक), लेनदार (बैंक, एवं अन्य वित्तीय संस्थान, ऋण-पत्र धाारक एवं दूसरे ऋणदाता), कर अधिकारी, नियमन एजेन्सी (कंपनी मामलों का विभाग, कंपनी रजिस्ट्रार, भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड, श्रम संगठन, व्यापारिक संघ, स्टॉक एक्सचेंज, एवं ग्राहक आदि।)
लेखांकन का मूल उद्देश्य निर्णय लेने के लिए उपयोगी सूचना उपलब्ध कराना है। यह साध्य को प्राप्त करने का साधन है और वह साध्य है, निर्णय जिसे उपलब्ध लेखांकन सूचना से सहायता मिलती है। आप लेखांकन सूचना के प्रकारों एवं इसके उपयोगकर्त्ताओं के संबंध में इस लेख आगे पढ़ेंगे।
2. लेखांकन एक सूचना के स्रोत के रूप में
जैसा कि पहले चर्चा की जा चुकी है लेखांकन एक सूचना के स्रोत के रूप में, परस्पर एक दूसरे से जुड़ी क्रियाओं की एक सुनिश्चित प्रक्रिया है. जो लेन-देनों की पहचान से आरम्भ होती है तथा वित्तीय विवरणों के निर्माण पर समाप्त होती है।लेखांकन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में सूचना उत्पन्न होती है। सूचनाओं का विकास अपने आप में साध्य नहीं है। यह सूचना के विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं में सूचना के प्रसार का माध्यम है। यह सूचना इच्छुक वर्गो को उचित निर्णय लेने में सहायक होती है। इसीलिए सूचना का प्रसार लेखांकन का अनिवार्य कार्य है। लेखांकन सूचना को उपयोगी बनाने के लिए निम्न को सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है–
उत्तर -
(क) आर्थिक (ख) प्रबन्ध/कर्मचारी (ग) लेनदार
(घ) समय-अन्तराल (ड.) बाह्य (च) सौदों की पहचान करना,
(छ) सूचना का संप्रेषण (ज) मौद्रिक (झ) कालक्रम के अनुसार
- आर्थिक निर्णय लेने के लिए सूचना उपलब्ध कराना।
- वित्तीय विवरणों को सूचना के प्रमुख स्रोत मानकर उनपर निर्भर करने वाले उपयोगकर्त्ताओं की सेवा करना;
- सम्भावित रोकड़ प्रवाह की राशि, समय एवं अनिश्चितता के पूर्वानुमान लगाने एवं मूल्यांकन के लिए उपयोगी सूचना उपलब्ध कराना;
- लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु संसाधनों के प्रभावी उपयोग के लिए प्रबन्धकों की योग्यता की जाँच के लिए सूचना प्रदान करना;
- ऐसे विषय जिनकी व्याख्या, मूल्यांकन, पूर्वानुमान या आकलन किया जाता है उनको निहित संकल्पनाओं को स्पष्ट करने के लिये तथ्यात्मक एवं व्याख्यात्मक सूचना प्रदान करना; एवं
- समाज को प्रभावित करने वाले कार्यों से संबंधित सूचना प्रदान करना।
प्रश्न बिंदु - 1
वाक्यों को पूरा करेंः
(क) वित्तीय विवरणों में दी गई सूचना ............ पर आधारित होती है।
(ख) आंतरिक उपयोगकर्त्ता व्यावसायिक इकाई के ............ होते हैं।
(ग) ............ कोई व्यावसायिक इकाई ऋण के लिए उपयुक्त है या नहीं इसका निर्धारण करने के लिए उसकी वित्तीय सूचना का उपयोग करना चाहेगा।
(घ) ........... व्यवसाय से बाहर के वह लोग होते हैं जो व्यवसाय के संबंध में निर्णय लेने के लिए सूचना का उपयोग करते हैं।
(ङ) इन्टरनेट वित्तीय सूचना उपयोगकर्त्ताओं को जारी करने के ............. में कमी लाने में सहायक रही है।
(च) सूचना उपयुक्त होगी यदि यह .......... है।
(छ) लेखांकन प्रक्रिया .............. से प्रारम्भ होती है और .......... पर समाप्त होती है।
(ज) लेखांकन व्यावसायिक प्रक्रिया लेन-देनों को .......... रुप में मापती है।
(झ) चिन्हित एवं मापित आर्थिक घटनाओं को ................ में अभिलेखित करना चाहिए।
(क) आर्थिक (ख) प्रबन्ध/कर्मचारी (ग) लेनदार
(घ) समय-अन्तराल (ड.) बाह्य (च) सौदों की पहचान करना,
(छ) सूचना का संप्रेषण (ज) मौद्रिक (झ) कालक्रम के अनुसार
लेखांकन सूचना के विकास में लेखाकार घटनाओं एवं लेन-देनों को मापने एवं उनके प्रक्रियन के लिए उनका अवलोकन, जाँच एवं पहचान करता है एवं उपयोगकर्त्ताओं के संप्रेषणों के लिए लेखांकन सूचना से परिपूर्ण विवरण तैयार करता है। इन विवरणों की प्रबन्धक एवं अन्य उपयोगकर्त्ता व्याख्या करते हैं, अवकूटन करते हैं एवं उनका उपयोग करते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सूचना निर्णय लेने के लिए प्रासंगिक, पर्याप्त एवं विश्वसनीय हो।
लेखांकन सूचना की आंतरिक एवं बाह्य उपयोगकर्त्ताओं के एक दूसरे से भिन्न दिखने वाली आवश्यकता के कारण लेखांकन विषय में उप-विषयों का विकास हुआ है जो हैं वित्तीय लेखांकन, लागत लेखांकन एवं प्रबन्ध लेखांकन ।
वित्तीय लेखांकन वित्तीय लेन-देनों को व्यवस्थित अभिलेखन एवं वित्तीय विवरणों को बनाने एवं प्रस्तुतिकरण में सहायता करता हैं जिससे कि संगठनात्मक सफलता एवं वित्तीय सुदृढ़ता को मापा जासके। इसका संबंध बीते हुए समय से होता है। प्राथमिक रूप से यह संरक्षणता का कार्य करता है साथ ही इसकी प्रकृति मौद्रिक है। इसका कार्य सभी हितार्थियों को वित्तीय सूचना प्रदान करना है।
लागत लेखांकन फर्म के द्वारा विभिन्न उत्पादों के विनिर्माण या प्रदत्त सेवाओं की लागत निर्धारण के
व्यय के विश्लेषण एवं मूल्य निर्धारण में सहायता प्रदान करता है। यह लागत पर नियन्त्रण में सहायता करता है एवं प्रबन्धकों को निर्णय लेने के लिए आवश्यक लागत संबंधी सूचना प्रदान करता है।
प्रबन्ध लेखांकन संगठन में कार्यरत लोगों को आवश्यक लेखांकन सूचना प्रदान करना है जिससे कि वह व्यावसायिक कार्यो के सम्बन्ध में निर्णय ले सके, योजना बना सके एवं नियन्त्रण कर सके। प्रबन्ध लेखांकन के लिए सूचना मुख्यतः वित्तीय लेखांकन एवं लागत लेखांकन से प्राप्त होती है जो प्रबन्धकों को बजट बनाने, लाभ प्रदत्त का आकलन करने, मूल्य निर्धारण करने, पूँजीगत व्यय के संबंध में निर्णय लेने आदि में सहायक होता है। इसके साथ ही यह अन्य दूसरी सूचनाएं (परिमाणात्मक एवं गुणात्मक, वित्तीय एवं गैर-वित्तीय) भी देता है जो भविष्य से संबंधित होती है तथा संगठन के निर्णयों के लिए प्रासंगिक भी। इन सूचनाओं में सम्मिलित हैं, संभावित विक्रय, रोकड़ प्रवाह, क्रय की आवश्यकताएं,
श्रम शक्ति की आवश्कताएं, हवा-पानी, भूमि, प्राकृतिक साधन, मानवीय सामाजिक उत्तरदायित्व पर
वित्तीय लेखांकन वित्तीय लेन-देनों को व्यवस्थित अभिलेखन एवं वित्तीय विवरणों को बनाने एवं प्रस्तुतिकरण में सहायता करता हैं जिससे कि संगठनात्मक सफलता एवं वित्तीय सुदृढ़ता को मापा जासके। इसका संबंध बीते हुए समय से होता है। प्राथमिक रूप से यह संरक्षणता का कार्य करता है साथ ही इसकी प्रकृति मौद्रिक है। इसका कार्य सभी हितार्थियों को वित्तीय सूचना प्रदान करना है।
लागत लेखांकन फर्म के द्वारा विभिन्न उत्पादों के विनिर्माण या प्रदत्त सेवाओं की लागत निर्धारण के
व्यय के विश्लेषण एवं मूल्य निर्धारण में सहायता प्रदान करता है। यह लागत पर नियन्त्रण में सहायता करता है एवं प्रबन्धकों को निर्णय लेने के लिए आवश्यक लागत संबंधी सूचना प्रदान करता है।
प्रबन्ध लेखांकन संगठन में कार्यरत लोगों को आवश्यक लेखांकन सूचना प्रदान करना है जिससे कि वह व्यावसायिक कार्यो के सम्बन्ध में निर्णय ले सके, योजना बना सके एवं नियन्त्रण कर सके। प्रबन्ध लेखांकन के लिए सूचना मुख्यतः वित्तीय लेखांकन एवं लागत लेखांकन से प्राप्त होती है जो प्रबन्धकों को बजट बनाने, लाभ प्रदत्त का आकलन करने, मूल्य निर्धारण करने, पूँजीगत व्यय के संबंध में निर्णय लेने आदि में सहायक होता है। इसके साथ ही यह अन्य दूसरी सूचनाएं (परिमाणात्मक एवं गुणात्मक, वित्तीय एवं गैर-वित्तीय) भी देता है जो भविष्य से संबंधित होती है तथा संगठन के निर्णयों के लिए प्रासंगिक भी। इन सूचनाओं में सम्मिलित हैं, संभावित विक्रय, रोकड़ प्रवाह, क्रय की आवश्यकताएं,
श्रम शक्ति की आवश्कताएं, हवा-पानी, भूमि, प्राकृतिक साधन, मानवीय सामाजिक उत्तरदायित्व पर
प्रभाव के संबंध में पर्यावरण के आंकड़े।
परिणामस्वरूप लेखांकन का क्षेत्र इतना व्यापक हो गया है कि नये क्षेत्र, जैसे – मानव संसाधन लेखांकन, समाजिक लेखांकन, उत्तरदायित्व लेखांकन भी महत्त्वपूर्ण हो गये हैं।लेखांकन की गुणात्मक विशेषताएं
गुणात्मक विशेषताएं उस लेखांकन सूचना का परिणाम है जो इसकी बोधगम्यता एवं उपयोगिता को बढ़ाती हैं। लेखांकन सूचना का निर्णय लेने में उपयोगिता के मूल्यांकन के लिए इसमें विश्वसनीयता, प्रासंगिकता, बोधगम्यता तथा तुलनात्मकता का गुण होना आवश्यक है।विश्वसनीयता
विश्वसनीयता का अर्थ है कि उपयोगकर्ता सूचना पर निर्भर रह सके। लेखांकन सूचना की विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि जो घटनाएं एवं लेन-देन हुए हैं उनके मापन व प्रस्तुतिकरण के बीच किस स्तर का अंतर्संबंध है। विश्वसनीय सूचना अनावश्यक अशुद्धि, व्यक्तिगत आग्रह से मुक्त होनी चाहिए तथा उसे विश्वसनीय रूप से वही दर्शाना चाहिए जो उससे अपेक्षित है। विश्वसनीयता को सुनिशि्चित करने के लिए सूचना विश्वास के योग्य होनी चाहिए, जिसकी जाँच स्वतंत्र रूप से उन पक्षों द्वारा की जा सके जो समान मापन की समान विधि का उपयोग कर रही हैं जो निष्पक्ष एवं समर्पित हैं ।महत्वपूर्ण टिप्स
लेखांकन की शाखाएं : आर्थिक विकास एवं तकनीकी उन्नत के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर प्रचालन एवं व्यवसाय के कंपनी स्वरूप का प्रादुर्भाव हुआ है। इसके कारण प्रबन्ध कार्य और अधिक जटिल हो गया है तथा इससे लेखांकन सूचना का महत्त्व बढ़ गया है। इसके परिणामस्वरूप लेखांकन की विशिष्ट शाखाओं का जन्म हुआ है इनका वर्णन संक्षेप में नीचे किया गया है।वित्तीय लेखांकन : लेखांकन की इस शाखा का उद्देश्य प्रत्येक वित्तीय लेन-देन का ब्यौरा रखना है जिससे किः
(क) एक लेखांकन अवधि में व्यवसाय में कितना लाभ कमाया है अथवा हानि हुई है, को ज्ञात किया जा सके,
(ख) लेखांकन अवधि के अंत में व्यवसाय की वित्तीय स्थिति का निर्धारण किया जा सके,
(ग) प्रबन्धक एवं अन्य रुचि रखने वाले पक्षों को आवश्यक वित्तीय सूचना उपलब्ध कराना।
लागत लेखांकन : लागत लेखांकन का उद्देश्य खर्चों का विश्लेषण करना है जिससे कि व्यावसयिक इकाई द्वारा विनिर्मित विभिन्न उत्पादों की लागत निर्धारित की जा सके एवं मूल्य निश्चित किये जा सकें। यह लागत निर्धारण एवं निर्णय लेने के लिए प्रबन्धकों को आवश्यक लागत की सूचना प्रदान करने में सहायक होती है।
प्रबन्ध लेखांकन : प्रबन्ध लेखांकन का उद्देश्य प्रबन्ध को नीति संबंधित विवेक पूर्ण निर्णय लेने एवं इसके नियमित कार्यावाही के प्रभाव का मूल्यांकन करने में सहायक होता है।
प्रासंगिकता
सूचना तभी प्रासंगिक होगी जबकि यह समय पर उपलब्ध होगी, पूर्वानुमान लगाने एवं प्रत्युत्तर देने में होगी। सूचना की प्रासंगिकता के लिए इसे उपयोगकर्त्ताओं के निर्णयों को निम्न के द्वारा प्रभावित करना अनिवार्य हैंः
(क) भूत, वर्तमान एवं भविष्य की घटनाओं के परिणामों का पूर्वानुमान लगाने, करने एवं प्रत्युतर देने में सहायक होना, अथवा
(ख) पिछले मूल्यांकन की पुष्टि अथवा उनमें संशोधन करना।
बोधगम्यता
बोधगम्यता से आशय है कि जो लोग निर्णय लेते हैं उन्हें लेखांकन सूचना को उसी संदर्भ में समझना चाहिए जिस संदर्भ में उन्हें तैयार किया गया है एवं प्रस्तुत किया गया है। किसी संदेश की वह विशेषताएं जो अच्छे अथवा बुरे संदेश में भेद करती हैं संदेश की बोधगम्यता का आधार है। संदेश तभी संप्रेषित माना जाता है
जब वह प्रेषणी द्वारा उसे उसी अर्थ में समझा जाए जिस अर्थ में भेजा गया है। लेखाकारों को सूचना को
बिना प्रासंगिकता एवं विश्वसनीयता को खोए इस प्रकार से प्रस्तुत करना चाहिए कि वह बोधगम्य हो।
बिना प्रासंगिकता एवं विश्वसनीयता को खोए इस प्रकार से प्रस्तुत करना चाहिए कि वह बोधगम्य हो।
तुलनीयता
यह पर्याप्त नहीं है कि वित्तीय सूचना एक समय विशेष पर विशेष परिस्थितियों में अथवा विशेष
प्रतिवेदन (रिपोर्ट) इकाई के लिए ही प्रासंगिक एवं विश्वसनीय हो। लेकिन यह भी महत्त्वपूर्ण है कि
सूचना के उपयोगकर्त्ता साधारण उद्देश्य के लिए प्रस्तुत व्यवसाय के वित्तीय प्रलेखों में प्रदर्शित विभिन्न आयामों की अन्य व्यावसायिक इकाईयों से परस्पर तुलना कर सकें।
लेखांकन प्रलेखों की तुलना करने के लिए यह आवश्यक है कि उनका संबंध समान अवधि व
समान मापन इकाई व समान प्रारूप में किया गया हो।
यह पर्याप्त नहीं है कि वित्तीय सूचना एक समय विशेष पर विशेष परिस्थितियों में अथवा विशेष
प्रतिवेदन (रिपोर्ट) इकाई के लिए ही प्रासंगिक एवं विश्वसनीय हो। लेकिन यह भी महत्त्वपूर्ण है कि
सूचना के उपयोगकर्त्ता साधारण उद्देश्य के लिए प्रस्तुत व्यवसाय के वित्तीय प्रलेखों में प्रदर्शित विभिन्न आयामों की अन्य व्यावसायिक इकाईयों से परस्पर तुलना कर सकें।
लेखांकन प्रलेखों की तुलना करने के लिए यह आवश्यक है कि उनका संबंध समान अवधि व
समान मापन इकाई व समान प्रारूप में किया गया हो।
प्रश्न अभ्यास - 2
आप रामोना एंटरप्राइज़िज़ में वरिष्ठ लेखाकार हैें। आप अपनी कंपनी के वित्तीय विवरणों एवं निर्णयों को उपयोगी बनाने के लिए कौन से तीन कदम उठाएंगे?
1 -----------
2 -----------
3 -----------
संकेतः लेखांकन सूचना की गुणात्मक विशेषताओं को देखें।उत्तर -
1. विश्वसनीयता अर्थात् प्रमाणिकता, निष्ठा, तटस्थता
2. प्रासंगिकता अर्थात् समयानुकूल
1. विश्वसनीयता अर्थात् प्रमाणिकता, निष्ठा, तटस्थता
2. प्रासंगिकता अर्थात् समयानुकूल
3. समझ योग्य एवं तुलनात्मकता
लेखांकन के उद्देश्य
सूचना प्रणाली के रूप में लेखांकन का मूल उद्देश्य इसके बाह्य एवं आंतरिक उपयोग करने वाले दोनों समूहों को उपयोगी सूचना उपलब्ध कराना है। आवश्यक सूचना विशेषतः बाह्य उपयोगकर्त्ताओं को वित्तीय विवरणों, जैसे - लाभ-हानि खाता एवं तुलन-पत्र, के रूप में प्रदान की जाती है। इनके अतिरिक्त प्रबन्धकों को समय-समय पर अतिरिक्त सूचना व्यवसाय के लेखांकन प्रलेखों से प्राप्त होती है।अतः लेखांकन के मूल उद्देश्य निम्नलिखित हैंः
A. व्यावसायिक लेन-देन का हिसाब रखना
लेखांकन का उपयोग लेखांकन पुस्तकों में सभी वित्तीय लेन-देनों के व्यवस्थित रूप में लेखा रखने के लिए किया जाता है। व्यवसाय में बहुत प्रतिभावान अधिकारी एवं प्रबंधक भी पूर्ण शुद्धता के साथ व्यवसाय में प्रतिदिन के विभिन्न लेन-देनों जैसे - क्रय, विक्रय, प्राप्ति, भुगतान आदि, को पूर्ण शुद्धता के साथ स्मरण नहीं रख सकते। इसीलिए सभी व्यावसायिक लेन-देनों का सही एवं पूर्ण लेखा नियमित रूप से रखा जाता है। इसके अतिरिक्त लेखांकित सूचना से सत्यता की जांच की जा सकती है तथा इसका उपयोग प्रमाण के रूप में किया जाता है।B. लाभ अथवा हानि की गणना
व्यवसाय के स्वामी निश्चित अवधि के व्यावसायिक कार्यकलापों के शुद्ध परिणामों को जानने केइच्छुक रहते हैं अर्थात् व्यवसाय ने लाभ कमाया है अथवा उससे हानि हुई है। अतः लेखांकन का दूसरा उद्देश्य किसी लेखांकन अवधि के दौरान व्यवसाय के लाभ अथवा हानि का निर्धारण है। जिसका निर्धारण व्यवसाय के उस अवधि के आय एवं व्ययों के लेखे-जोखों की सहायता से लाभ-हानि खाता बनाकर सरलता से किया जा सकता है। लाभ आगम (आय) के व्यय से आधिक्य को प्रकट करता है। यदि किसी एक अवधि की कुल आगम 60,000 रु. तथा कुल व्यय 5,40,000 रु. है तो लाभ की राशि 60,000 रु. होगी (6,00,000 रु. – 5,40,000 रु.) होगा। यदि कुल व्यय कुल आगम से अधिक है तो अन्तर हानि को दर्शाएगा।
C. वित्तीय स्थिति को प्रदर्शित करना
लेखांकन का उद्देश्य प्रत्येक लेखांकन अवधि के अन्त में परिसंपत्तियों एवं देयताओं के रूप में वित्तीय स्थिति का निर्धारण करना है। किसी व्यावसायिक संगठन के संसाधनों एवं इनके विरुद्ध दावों (देयताओं) का सही लेखा-जोखा एक विवरण, जिसे, स्थिति विवरण अथवा वस्तु स्थिति विवरण अथवा तुलन-पत्र कहते हैं, को बनाने में सहायता प्रदान करता है।D. उपयोगकर्त्ताओं को सूचनाएं उपलब्ध कराना
लेखांकन प्रक्रिया से जनित लेखांकन सूचना को प्रतिवेदन विवरण ग्राफ एवं चार्ट रूप में उन उपयोगकर्त्ताओं को संप्रेषित की जाती है जिन्हें विभिन्न निर्णय परिस्थितियों में इनकी आवश्यकता होती है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है। मुख्यतः उपयोगकर्त्ताओं के दो समूह हैं। आंतरिक उपयोगकर्त्ता जिनमें मुख्यतः प्रबन्धक होते हैं जिन्हें नियोजन, नियन्त्रण एवं निर्णय लेने के लिए समय पर विक्रय लागत, लाभप्रदता आदि कीसूचना की आवश्यकता होती है एवं वाह्य उपयोगकर्त्ता जिनमें आवश्यक सूचनाएं प्राप्त करने के सीमित
अधिकार, योग्यता एवं साधन होते हैं तथा जिन्हें वित्तीय विवरणों (तुलन-पत्र, लाभ-हानि खाता) पर निर्भर करना होता है। बाह्य उपयोगकर्त्ता मूलतः निम्न में रुचि रखते हैंः
- निवेषक एवं संभावित निवेषकः निवेष की जोखिम एवं उन पर आय के संबंध में सूचनाएं।
- क्रमसंघ एवं कर्मचारी समूहः व्यवसाय की स्थिरता, लाभप्रदता एवं उसके धन के बंटवारे केसम्बन्ध में सूचनाएं।
- ऋणदाता एवं वित्तीय संस्थान कंपनी की साख एवं इसकी ऋण एवं ब्याज को भुगतान की क्षमता से परिपक्व संबंधित सूचना।
- आपूर्तिकर्त्ता एवं लेनदारः देनदारी की तिथि को भुगतान करने तथा व्यवसाय की निरंतरता के संबंध में सूचना।
- ग्राहकः व्यवसय की निरंतरता परिणामतः उत्पाद पार्ट्स एवं बिक्री के पश्चात की सेवाओं के संबंध में सूचनाएं।
- सरकार एवं अन्य नियमकः संसाधनों के आबंटन एवं नियमों के पालन से संबंधित सूचना।
- सामाजिक उत्तरदायित्व समूहः जैसे - पर्यावरण समूह-पर्यावरण पर प्रभाव एवं उसके संरक्षण के सम्बन्ध में सूचना।
- प्रतियोगीः अपने प्रतियोगी की अपेक्षाकृत शक्ति एवं तुलनात्मक निर्देश चिन्ह के उद्देश्य से
- संबंधित सूचना। जबकि उपर्युक्त वर्ग के उपयोगकर्त्ता कम्पनी की संपत्ति हिस्सा बंटाते हैं,प्रतियोगी सूचनाओं की आवश्यकता मुख्यतः व्यूह रचना के लिए होती है।
प्रश्न बिंदु - 3
- कौन सा समूह ........... में अधिकतम रुचि लेगाः
- ------------------------- (क) फर्म को वैट एवं अन्य कर देयता
- ------------------------- (ख) भावी वेतन, पुरस्कार एवं बोनस
- ------------------------- (ग) फर्म की नैतिक एवं पर्यावरण संबंधी क्रियाएं
- ------------------------- (घ) क्या फर्म का दीर्घ-अवधि भविष्य है
- ------------------------- (ङ) लाभप्रदता,
(क) सरकार एवं अन्य नियामक (ख) प्रबन्ध (ग) सामाजिक उत्तरदायित्व समूह
(घ) ऋणदाता (ड.) आपूर्तिकर्त्ता एवं लेनदार (च) ग्राहक
लेखांकन की भूमिका
शताब्दियों से आर्थिक विकास में परिवर्तन एवं सामाजिक आवश्यकताओं की बढ़ती मांग के साथ लेखांकन की भूमिका में परिवर्तन होता रहा है। यह किसी उद्यम के मापन वर्गीकरण एवं संक्षिप्तीकरण के द्वारा उन्हें विश्लेषित एवं वर्णित भी करता है और उन्हें विवरणों व प्रतिवेदनों के रूप में प्रस्तुत करता है। ये विवरण एवं प्रतिवेदन उस संगठन की वित्तीय स्थिति व संचालन परिणामों को प्रदर्शित करते हैं। इसीलिए इसे व्यवसाय की भाषा कहा जाता है। परिमाणात्मक वित्तीय सूचना प्रदान कर यह सेवा कार्य भी करता है जो उपयोगकर्त्ताओं को अनेक प्रकार से सहायता देती है। एक सूचना प्रणाली के रूप में लेखांकन एक संगठन की विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को एकत्रित करके उन्हें व्यवसाय में रुचि रखने वाले विभिन्न पक्षों को संप्रेषित करता है। लेखांकन सूचनाओं का संबंध भूतकाल के लेन-देनों से होता है तथा यह परिमाणात्मक एवं वित्तीय होती है। यह गुणात्मक एवं गैर-वित्तीय सूचना प्रदान नहीं करती। लेखांकन सूचनाओं का उपयोग करते समय लेखांकन की इन सीमाओं को ध्यान में रखना आवश्यक है।प्रश्न बिंदु - 4
सही उत्तर पर निशान लगाएं
1. निम्न में से कौन सी व्यावसायिक लेन-देन नहीं हैः
(क) व्यवसाय के लिए 10,000 रु. का फर्नीचर खरीदा।
(ख) 5,000 रु. का कर्मचारियों को वेतन का भुगतान किया।
(ग) अपने निजी बैंक खाते से 20,000 रु. अपने बेटे की फीस का भुगतान किया।
(घ) 20,000 रु. व्यवसाय में से बेटे की फीस का भुगतान किया।
2. दीप्ति अपने व्यवसाय के लिए एक भवन खरीदना चाहती है। इस निर्णय से संबंधित उपयुक्त आंकड़े कौन से हैं
(क) इसी प्रकार के व्यवसाय ने वर्ष 2000 में 1,00,000 रु. का भवन खरीदा।
(ख) 2003 की भवन की लागत का विवरण।
(ग) 1998 की भवन की लागत का विवरण।
(घ) इसी प्रकार के भवन की अगस्त 2005 में लागत 25,00,000 रु.।
3. एक सूचना प्रक्रिया के रूप में लेखांकन का अन्तिम चरण कौन सा है?
(क) लेखा-पुस्तकों में आंकड़ो का लेखा।
(ख) वित्तीय विवरणों के रूप में संक्षिप्तीकरण।
(ग) सूचना का संप्रेषण।
(घ) सूचना का विश्लेषण एवं उसकी व्याख्या करना।
4. जब लेखांकन सूचना को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत कर दिया गया हो तो लेखांकन सूचना की कौन सी
गुणात्मक विशेषता परिलक्षित होती हैः
(क) सुबोधता
(ख) प्रासंगिकता
(ग) तुलनीयता
(घ) विश्वसनीयता
5. मापने की सामान्य इकाई एवं प्रतिवेदन का साधारण प्रारूप प्रोत्साहित करता हैः
(क) तुलनीयता
(ख) सुबोधता बोधगम्यता
(ग) उपयुक्तता
(घ) विश्वसनीयता
(क) इसी प्रकार के व्यवसाय ने वर्ष 2000 में 1,00,000 रु. का भवन खरीदा।
(ख) 2003 की भवन की लागत का विवरण।
(ग) 1998 की भवन की लागत का विवरण।
(घ) इसी प्रकार के भवन की अगस्त 2005 में लागत 25,00,000 रु.।
3. एक सूचना प्रक्रिया के रूप में लेखांकन का अन्तिम चरण कौन सा है?
(क) लेखा-पुस्तकों में आंकड़ो का लेखा।
(ख) वित्तीय विवरणों के रूप में संक्षिप्तीकरण।
(ग) सूचना का संप्रेषण।
(घ) सूचना का विश्लेषण एवं उसकी व्याख्या करना।
4. जब लेखांकन सूचना को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत कर दिया गया हो तो लेखांकन सूचना की कौन सी
गुणात्मक विशेषता परिलक्षित होती हैः
(क) सुबोधता
(ख) प्रासंगिकता
(ग) तुलनीयता
(घ) विश्वसनीयता
5. मापने की सामान्य इकाई एवं प्रतिवेदन का साधारण प्रारूप प्रोत्साहित करता हैः
(क) तुलनीयता
(ख) सुबोधता बोधगम्यता
(ग) उपयुक्तता
(घ) विश्वसनीयता
उत्तर -
1. (ग) 2. (क) 3. (ग) 4. (ख) 5. (क)
1. (ग) 2. (क) 3. (ग) 4. (ख) 5. (क)
टिप्स - 4
लेखांकन की विभिन्न भूमिकाएं
- एक भाषा के रूप मेंः इसे व्यवसाय की भाषा माना गया है जिसे व्यवसाय से संबधित सूचना को संप्रेषित करने के उपयोग मे लाया जाता है।
- एक ऐतिहासिक लेखाः इसे किसी व्यवसाय को वित्तीय सौदों का क्रमवार लेखा माना जाता है वास्तविक राशि पर वर्तमान आर्थिक वास्तविकता - इसे किसी इकाई की सही आय के निर्धारण का माध्यम माना जाता है एक समय से दूसरे समय में धन में परिवर्तन होता है।
- एक सूचना तंत्रः इसे एक एेसी प्रक्रिया माना जाता है जो संप्रेषण मार्ग के द्वारा सूचना स्रोत (लेखाकार) को प्राप्तकर्त्ताओं (बाह्य उपयोगकर्त्ता) से जोड़ता है।
- एक वस्तुः विशिष्ट सूचना को एक ऐसी सेवा माना जाता है जिसकी समाज में मांग है तथा लेखाकार जिसे उपलब्ध कराने के लिए इच्छुक एवं सक्षम भी हैं।
लेखांकन के आधारभूत पारिभाषिक शब्द
A. इकाई
यहाँ इकाई से अभिप्राय एक एेसी वस्तु से है जिनका एक निश्चित अस्तित्व है। व्यावसायिक इकाई से अभिप्राय विशेष रूप से पहचान किए गये व्यावसायिक उद्यम से है जैसे - सुपर बाजार, हायर ज्वैलर्स, आई.टी.सी.लि., आदि। एक लेखांकन प्रणाली को सदा विशिष्ट व्यावसायिक अस्तित्व के लिए तैयारकिया जाता है (इसे लेखांकन इकाई भी कहते हैं)।
B. लेन-देन
दो या दो से अधिक इकाइयों के बीच कोई घटना जिसका कुछ मूल्य होता है लेन-देन कहलाता है। यह माल का क्रय, धन की प्राप्ति, लेनदार को भुगतान, व्यय आदि हो सकती है। यह एक नकद अथवा उधार सौदा हो सकता है।C. परिसंपत्तियाँ
यह किसी उद्यम के आर्थिक स्रोत होते हैं जिन्हें मुद्रा के रूप में उपयोगी ढंग से प्रकट किया जा सकता है। परिसंपत्तियों का मूल्य होता है तथा इनका व्यवसाय के परिचालन में उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए सुपर बाजार के पास ट्रकों का बेड़ा है जिनका उपयोग यह खाद्य पदार्थों की सुपुर्दगी के लिए करता है। ट्रक इस प्रकार से उद्यम को आर्थिक लाभ पहुँचाते रहे हैं। इसे सुपर बाजार के तुलन-पत्र की परिसंपत्ति की ओर दर्शाया जाएगा। परिसंपत्तियों को सामान्यतया दो वर्गों में बाँटा जाता हैः चालू व गैर चालू परिसंपत्ति ।D. देयताएँ
यह वे देनदारियां या ऋण हैं जिनका भुगतान व्यावसायिक इकाई ने भविष्य में किसी समय करना है। यह लेनदारों का फर्म की परिसंपत्तियों पर दावे का प्रतिनिधित्व करती है। व्यवसाय चाहे छोटा हो या बड़ा कभी न कभी उसे धन उधार लेने और उधार पर वस्तुएं खरीदने की आवश्यकता पड़ती है।उदाहरण के लिए 25 मार्च, 2015 को सुपर बाजार ने फास्ट फूड प्रोडक्ट्स कंपनी से 10,000 रु. का माल उधार क्रय किया। यदि 31 मार्च, 2015 को सुपर बाजार का तुलन-पत्र तैयार किया जाए तो फास्ट फूड प्रोडक्ट्स कंपनी को उसके स्थिति विवरण के देयता पक्ष में लेनदार (खाते देय) के रूप में दर्शाया जायेगा।
यदि सुपर बाजार दिल्ली स्टेट कोअॉपरेटिव बैंक लि. से तीन वर्ष की अवधि के लिए ऋण लेती है तो इसे भी सुपर बाजार के तुलन-पत्र में देनदारी के रूप में दर्शाया जायेगा। देयताओं को दो वर्गों में बांटा जाता हैः चालू व गैर चालू देयताएँ ।
E. पूँजी
स्वामी द्वारा व्यवसाय में उपयोग के लिए किया जाने वाला निवेश पूँजी कहलाता है। व्यावसायिक इकाई के लिए इसे स्वामी रोकड़ अथवा परिसंपत्ति के रूप में लाता है। पूँजी व्यवसाय की परिसंपत्तियों पर स्वामी का दायित्व एवं दावा है इसलिए इसे तुलन-पत्र के देयता की ओर पूँजी के रूप में दर्शाया जाता है।F. विक्रय
विक्रय वस्तुओं की बिक्री या सेवाओं की बिक्री या उपयोगकर्त्ताओं को प्रदान की गई सेवाओं से प्राप्तकुल आगम है। विक्रय नकद भी हो सकता है और उधार भी।
महत्वपूर्ण बिंदु
चालू व गैर चालू मदों में अंतर
- चालू देयताएँ एवं परिसंपत्तियाँ प्रचालन चक्र से संबंधित हैं।
- चालू देयताएँ एवं परिसंपत्तियों का भुगतान/निपटान 12 माह के भीतर किया जाता है।
- चालू मदें मुख्यतः व्यापारिक गतिविधियों के लिये प्रयोग में आती हैं।
- चालू मदें नकद व नकद समतुल्य हैं।
G. आगम
यह वह धनराशि है जो व्यवसाय वस्तुओं की बिक्री या उपभोक्ताओं को प्रदान की गई सेवाओं से अर्जित करता है। इसे विक्रय आमदनी भी कहा जाता है। आमदनी की अन्य दूसरी मदें जो अधिकांश व्यवसायों में समान रूप से प्रयुक्त होती है यह हैः कमीशन, ब्याज, लाभांश, रॉयल्टी, किराया प्राप्त आदि। आमदनी को आय भी कहते है।H. व्यय
यह व्यवसाय में आगम अर्जित करने की प्रक्रिया में आने वाली लागत है। साधारणतः व्यय का मापन एक लेखांकन अवधि के दौरान उपयोग की गई परिसंपत्तियों या उपयोग की गई सेवाओं के रूप में किया जाता है। व्यय की अधिकांश मदें हैः मूल्य ह्रास, किराया, मजदूरी, वेतन, ब्याज, बिजली, पानी, दूरभाष इत्यादि की लागत।I. खर्च
यह किसी लाभ, सेवा अथवा संपत्ति को प्राप्त करने पर राशि व्यय करना अथवा देनदारी उत्पन्न करना है। खर्च के उदाहरण हैंः वेतन, माल का क्रय, मशीन का क्रय, फर्नीचर का क्रय आदि। यदि व्यय का लाभ एक वर्ष के भीतर प्राप्त हो जाता है। इसे व्यय कहेंगे (इसे आगम व्यय कहते हैं), दूसरी ओर यदि खर्चे का लाभ एक वर्ष से अधिक मिलता है तो इसे संपत्ति माना जायेगा (इसे पूंजीगत व्यय भी कहते हैं) इसके उदाहरण हैं मशीन, फर्नीचर आदि का क्रय।J. लाभ
लाभ एक लेखांकन वर्ष में व्ययों पर आमदनी का अधिक्य है। इसमें स्वामी की पूंजी में वृद्धि होती है।K. अभिवृद्धि
व्यवसाय से प्रासंगिक घटनाओं अथवा लेनदेनों से हाने वाले लाभ को अभिवृद्धि कहते हैं। इसके उदाहरण हैं स्थाई संपत्ति का विक्रय, न्यायालय में किसी मुकदमे को जीतना, किसी परिसंपत्ति के मूल्य में वृद्धि।L. हानि
किसी अवधि की संबंधित आगम से व्यय अधिक्य को हानि कहते हैं। इससे स्वामी की पूँजी घटती है। यह मुद्रा अथवा मुद्रा सममूल्य (लागत पर व्यय) में हुई हानि की पुनः वसूली न होने की ओर संकेत करती है। उदाहरण के लिए चोरी अथवा आग दुर्घटना आदि से रोकड़ अथवा माल का नष्ट होना। इससे स्थाई परिसंपत्ति के विक्रय पर होने वाली हानि भी सम्मिलित है।M. बट्टा
बट्टा विक्रय की गई वस्तुओं के मूल्य में कटौती को कहते हैं। यह दो प्रकार से दी जाती है। एक ढंग है वस्तुओं के विक्रय पर सूचि मूल्य पर तय प्रतिशत से कटौती। ऐसी छूट को व्यापारिक बट्टा कहते हैं। यह साधारणतया विनिर्माताओं द्वारा थोक व्यापारियों को एवं थोक व्यापारियों द्वारा फुटकर विक्रेताओं को दी जाती है। वस्तुओं के उधार विक्रय पर देनदार यदि भुगतान तिथि अथवा उससे पहले देय राशि का भुगतान कर देते हैं तो उन्हें देय राशि पर कुछ छूट दी जा सकती है। यह कटौती देय राशि परभुगतान कटौती के समय दी जाती है। इसीलिए इसे नकद कटौती कहते हैं। नकद कटौती एक ऐसा प्रोत्साहन है जो देनदारों को तुरंत भुगतान के लिए प्रेरित करता है।
N. प्रमाणक
किसी लेन-देन के समर्थन में विलेख के रूप में प्रमाण को प्रमाणक कहते हैं। उदाहरण के लिए यदिहम माल नकद खरीदते हैं तो हमें कैशमैमो मिलता है, यदि हम इसे उधार खरीदते हैं तो हमे बीजक मिलता है, जब हम भुगतान करते हैं तो हमें रसीद प्राप्त होती है।
O. माल
वह उत्पाद जिनसे व्यवसायी कारोबार करता है, माल कहलाता है। अर्थात् जिनका वह क्रय एवं विक्रय अथवा उत्पादन एवं विक्रय कर रहा है। जिन वस्तुओं को व्यवसाय में उपयोग के लिए खरीदा जाता है, उन्हें माल नहीं कहते हैं। उदाहरण के लिए फर्नीचर विक्रेता यदि मेज एवं कुर्सियाँ खरीदता है तो यह माल है लेकिन दूसरों के लिए यह फर्नीचर परिसंपत्ति माना जाता है। इसी प्रकार से स्टेशनरी का कारोबार करने वाले के लिए स्टेशनरी माल है जबकि दूसरों के लिये यह व्यय की एक मद है (यह क्रय नहीं है)।P. क्रय
क्रय एक व्यवसाय द्वारा नकद या उधार प्राप्त वस्तुओं का कुल मूल्य है जिन्हें विक्रय करने के लिए प्राप्त किया गया है। एक व्यापारिक इकाई में माल को क्रय उसी रूप में या विनिर्माण प्रक्रिया पूर्ण हो जाने के बाद विक्रय के लिए किया जाता है। एक उत्पादन इकाई में कच्चा माल क्रय किया जाता है। फिर उसे तैयार माल में परिवर्तित करके बेचा जाता है। क्रय नकद भी हो सकता है और उधार भी।Q. आहरण
परियोजना 1ः उपयुक्त विकल्प का चुनाव करेंःमदें चालू परिसंपत्तियाँ गैर चालू परिसंपत्तियाँ चालू देयताएँ गैर चालू देयताएँ
मशीनरी
लेनदार
वैकस्थ रोकड़
ख्याति
देय विपत्र
भूमि एवं भवन
फर्नीचर
कंप्यूटर सॉफ्टवेयर
मालसूची
मोटर वाहन
निवेश
बैंक से ऋण
देनदार
पेटेंट
एयर-कंडिश्नर
खुले औजार
व्यवसाय में स्वामी द्वारा अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए निकाली गई नकद धनराशि या वस्तुएं आहरण हैं। आहरण स्वामियों के विनियोग को घटाता है।
R. स्टॉक
किसी भी व्यवसाय में जो वस्तुएं, अतिरिक्त पुर्जे व अन्य मदें हाथ में होती हैं उनका मापन रहतिया (स्टॉक) कहलाता है। इसे हस्तस्य रहतिया भी कहते हैं। एक व्यापारिक इकाई में स्टॉक से अभिप्राय उस माल से है जो लेखांकन वर्ष के अन्तिम दिन बिना बिका रह गया है। इसे अन्तिम स्टॉक या अन्तिम स्कंध भी कहते हैं। एक उत्पादन कंपनी के अन्तिम स्टॉक में अंन्तिम दिन का कच्चा माल, अर्धनिर्मित व निर्मित स्टॉक वस्तुएं सम्मिलित होती हैं। इसी प्रकार प्रारंभिक स्टॉक किसी लेखांकन वर्ष की प्रारंभिक स्टॉक राशि है।S. देनदार
देनदार प्राप्य खाते वे व्यक्ति या इकाइयां हैं जिनसे व्यावसायिक संस्था को उससे वस्तुएं या सेवाएं उधार प्राप्त करने के बदले कुछ धनराशि लेनी है। इन व्यक्तियों या इकाइयों द्वारा कुल प्राप्य राशि को अंतिम दिन तुलन-पत्र में विविध देनदारों के रूप में परिसंपत्ति पक्ष में दर्शाया जाता है।T. लेनदार
लेनदार वे व्यक्ति एवं/या इकाइयां है, जिनका किसी व्यवसायिक संस्था द्वारा उनसे उधार वस्तुएं या सेवाएं प्राप्त करने के बदले भुगतान करना है। इन व्यक्तियों या इकाइयों को देय कुल धन राशि को अंतिम दिन स्थिति विवरण में विविध लेनदारों (देय खातों) के रूप में देयता पक्ष में दर्शाया जाता है।प्रश्न बिंदु - 5
मैसर्स सनराइज ने 5,00,000 रु. के प्रारम्भिक निवेश से स्टेशनरी क्रय-विक्रय का व्यवसाय प्रारम्भ किया। इस राशि में से उसने 1,00,000 रु. फर्नीचर एवं 2,00,000 रु. स्टेशनरी का सामान खरीदने पर व्यय किये। उसने एक विक्रेता एवं एक लिपिक की नियुक्ति की। महीने के अन्त में 5,000 रु. उनके वेतन के भुगतान किये। जो स्टेशनरी उसने क्रय की थी उसमें से कुछ तो उसने 1,50,000 रु. में नकद बेची तथा कुछ रवि को 1,00,000 रु. में उधार बेची। इसके पश्चात उसने श्री पीस से 1,50,000 रु. की स्टेशनरी का सामान खरीदा। अगले वर्ष के प्रथम सप्ताह में अग्नि दुर्घटना हुई जिसमें 30,000 रु. मूल्य की स्टेशनरी स्वाहा हो गई। 40,000 रु. की लागत की मशीनरी के एक भाग को 45,000 रु. में बेच दिया।उपर्युक्त के आधार पर निम्न का उत्तर देंः
1. मैसर्स सनराइज ने कितनी पूँजी से व्यापार आरम्भ किया।
2. उसने कौन-कौन सी स्थाई संपत्ति खरीदी?
3. विक्रय किये गये माल की कीमत क्या थी?
4. लेनदार कौन था? उसको कितनी राशि देय है?
5. उसने कौन-कौन से व्यय किये?
6. उसे कितना लाभ हुआ?
7. उसे कितनी हानि हुई?
8. उसका देनदार कौन है? उससे कितनी राशि प्राप्त होनी है?
9. उसने कुल कितनी राशि व्यय की एवं कुल कितनी हानि हुई?
10. बताएं कि निम्न मदें परिसंपत्तियां हैं, देयताएं हैं, आगम हैं, व्यय है अथवा इनमें से कोई भी नहीं है।
विक्रय, देनदार लेनदार, प्रबन्धक को वेतन, देनदारों को छूट, स्वामी का आहरण।
उत्तर -
1. 5,00,000 रु. 2. 1,00,000 रु. 3. 2,00,000 रु. 4. श्री रीस 1,50,000 रु. 5. 5,000 रु. 6. 5,000 रु. 7. 30,000 रु. 8. रवि 1,00,000 रु. 9. 35,000 रु.
10. परिसम्पत्तियाँ; देनदारों; देयता; आहरण; आगमः विक्रय व्यय, बट्टा, वेतन
1. 5,00,000 रु. 2. 1,00,000 रु. 3. 2,00,000 रु. 4. श्री रीस 1,50,000 रु. 5. 5,000 रु. 6. 5,000 रु. 7. 30,000 रु. 8. रवि 1,00,000 रु. 9. 35,000 रु.
10. परिसम्पत्तियाँ; देनदारों; देयता; आहरण; आगमः विक्रय व्यय, बट्टा, वेतन
अधिगम उद्देश्यों के संदर्भ में सारांश
- लेखांकन का अर्थः लेखांकन व्यावसायिक लेन-देनों की पहचान करने, मापने, अभिलेखन करने एवं आवश्यक सूचना को उनके उपयोगकर्त्ता को सम्प्रेषण की प्रक्रिया है।
- लेखांकन सूचना के स्रोत के रूप मेंः लेखांकन सूचना के स्रोत के रूप में किसी संगठन की आर्थिक घटनाओं की सूचनाओं के पहचानने, मापने, अभिलेखन करने एवं सूचनाओं के उपयोगकर्त्ताओं के संप्रेषण की प्रक्रिया है।
- लेखांकन सूचना के उपयोगकर्त्ताः लेखांकन की समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह हर स्तर के प्रबन्धकों को एवं उन लोगों को, जिनका उद्यम में वित्तीय हित होता है, जैसे वर्तमान एवं संभावित निवेशकर्त्ता एवं लेनदार, सूचना उपलब्ध कराता है। लेखांकन सूचना, परोक्ष रूप से वित्तीय हित रखने वालों के लिए भी महत्त्व रखती है। ये लोग हैं नियमन एजेंसीयाँ, कर अधिकारी, ग्राहक, श्रमिक संगठन, व्यापारिक संघ, स्टॉक एक्सचेंज तथा अन्य।
- लेखांकन की गुणात्मक विशेषताएंः लेखांकन सूचना को अधिक उपयोगी बनाने के लिए इसमें निम्न गुणात्मक विशेषताओं का होना आवश्यक हैः विश्वसनीयता ,सुबोधता,प्रासंगिकता ,तुलनीयता
- लेखांकन का उद्देश्यः लेखांकन का प्राथमिक उद्देश्य निम्न हैः व्यवसाय के क्रिया-कलापों का अभिलेखन; लाभ एवं हानि की गणना; व्यावसायिक स्थिति का प्रदर्शन; और विभिन्न वर्गों के लिए सूचना उपलब्ध कराना।
- लेखांकन की भूमिकाः लेखांकन स्वयं में एक साध्य नहीं है। यह साध्य को प्राप्त करने का एक साधन है। इसकी भूमिकाएँ हैंः
- व्यवसाय की भाषा
- ऐतिहासिक अभिलेखन
- वर्तमान आर्थिक वास्तविकता
- सूचना तंत्र
- उपयोगकर्त्ताओं को सेवा प्रदान करना